Wednesday, October 24, 2018

कुछ बीमारी:कुछ कविताएं

कुछ बीमारी: कुछ कविताएं
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आँखों के सामने
तेजी से बदलतें है दृश्य
अंधेरा-रौशनी मिलकर
खेलते है आइस-पाइस
अपने ही ग्रह से
उखड़ने लगते है पांव
गुरुत्वाकर्षण छोड़ देता है साथ
गिरने से नही, सम्भलने से लगता है डर
विज्ञान इसे चक्कर कहता है
जिसके हो सकते है
एक से अधिक कारण
मैं अज्ञानी बन मूंद लेता हूँ आँखें
सुनता हूँ कान में
तुम्हारी चैतन्य, मगर मद्धम आवाज़
गिरने का भय
सम्भलनें का प्रशिक्षण है।
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पिछले दिनों
मेरी एक कंधे की
एक हड्ड़ी चटक गई
जिम्मेदारी जब चटकती है
तब चटक जाते है
आसपास के नजदीकी तंतु भी
दर्द से करहाते वक्त
अपनी देह से की मैंने
सबसे गहरी बात
जिसका नही मिला कोई जवाब
जितना एकतरफा बातें करता हूँ मैं
सब मेरे अंदर से
कुछ चटक जाने का परिणाम है।
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शिरा और धमनी
का अंतर नही है मुझे ज्ञात
भूल गया हूँ
मैं विज्ञान के आरंभिक सभी पाठ
वसा जमनें लगा है मेरे अंदर
रक्त प्रवाह को कर सकता है अवरुद्ध
ऐसा बताया मेरे डॉक्टर ने
साथ चेताया मुझे कि
हृदय केवल आघात से मरता है
मैं कहने ही वाला था कि
हृदय मरता है प्रेम में उपेक्षा से भी
मगर चुप रह गया यह सोचकर
क्या पता विज्ञान न मानता हो प्रेम।
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देह नश्वर है
एकदिन नष्ट हो जानी है
अपनी यात्रा पूर्ण करके
दर्शन पढ़कर हो जाता हूँ
मैं थोड़ा बेफिक्र
व्याधियां जब घेरती है मुझे
दर्शन नही विज्ञान आता है याद
दर्शन और विज्ञान
आगे पीछे खड़े है मेरे
मैं दोनों के मध्य
पंजो के बल उचक-उचक कर
देख रहा हूँ दुनिया
इसलिए
मेरे व्यक्तित्व का एक दर्शन
और कृतित्व का है एक विज्ञान।
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©डॉ. अजित