अज्ञातवास की कविताएँ
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अज्ञातवास
पहली
बार एक महाकाव्य में
प्रयुक्त
हुआ
दूसरी
बार इसे उधार माँगा प्रेम ने
तीसरी
बार यह बना मेरा चुनाव
दोनों
से अलग था अज्ञातवास
बताना
है थोड़ा मुश्किल
लिखना
है थोड़ा आसान
अ
ज्ञात
वास
**
उसने
पूछा
तुमने
पूछा
मैंने
खुद से पूछा
आखिर
क्या है वो अज्ञात?
जो
बसना चाहता है मेरे अन्दर
एकांत
की चाह
क्यों
होती है प्रकट
इसका
सही-सही जवाब था मेरे पास
मगर
कोई नही था सुनने वाला
अज्ञातवास
के समय
अज्ञातवास
प्रश्नों के जवाब का नही
जवाब
के प्रश्नों को जानने का समय था मेरे लिए.
**
भाषा
के शुचितावादी
चिढ़
गए थे उसी दिन
जब
मैंने कहा
अज्ञातवास
में जा रहा हूँ मैं
उन्हें
लगा ये अक्षम्य अपराध
ठीक
उसी दिन जाना
मैंने
इस शब्द का
चमत्कारिक
प्रभाव
**
अज्ञातवास
का मतलब
सम्पर्क
शून्यता नही था
अज्ञातवास
का मतलब विकसित करना
अज्ञातवास
का अपमान था
इसलिए
सम्वाद ने तय की
अज्ञातवास
में लम्बी दूरी तय
और
लौटकर आया मुझ तक
गहरे
अपनेपन के साथ.
**
शब्दों
की ध्वनि पर
आचार्यों
के है अनुभूत भाष्य
इसलिए
अज्ञातवास ने मुझे डराया नही
बल्कि
जगाया उस नींद से
जिसमें
मैं सो रहा था मुद्दत से
और
थकन बरकार रही हमेशा.
©डॉ.
अजित
1 comment:
बहुत दिनों के बाद?
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