Thursday, June 16, 2016

बेबसी

एक दरख्वास्त
तुम्हारी बेरुखी की दराज़ में
सबसे नीचे मुद्दत से रखी है

एक इस्तीफ़ा तुम्हारी मेज़ के कोने पर
नामालूम नाराज़गी के पेपरवेट तले दबा
अरसे से फडफड़ा रहा है

एक खत तुम्हारे डस्टबिन की मुहब्बत में
कुछ महीनों से गिरफ्तार है
स्याही की गोंद बना वो उसके दिल से चिपक गया है

एक बोसा तुम्हारी पलकों
की महीन दरारों में दुबका बैठा है
उसे डर है तुम्हारे आंसू उसका वजूद न खत्म कर दे

एक शिकायत
गंगाजल में जा मिली है
रोज़ आचमन के समय तुलसीदल के साथ
तुम उसे घूँट घूँट पीती है
मगर तुम्हें इसकी खबर नही है

कुछ मलाल तुम्हारे लॉन की घास के साथ उग आए है
वो रोज़ तुम्हारे नंगे पाँव के सहारे
तुम्हारे दिल में दाखिल होना चाहतें है
मगर तुम उन्हें खरपतवार समझ उखाड़ देती हो

कुछ बहाने,कुछ सात्विक झूठ और कुछ सफाईयां
रोज़ तुम्हारी चाय के कप के इर्द गिर्द भटकती है
तुम जैसे ही फूंक मारकर चाय से मलाई हटाती हो
वो उस तूफ़ान में भटकर
धरती के सबसे निर्जन कोने में पहूंच जाते है

तमाम कोशिशों के बावजूद भी
तुम्हारे वजूद में
नही दाखिल हो पा रहा है मेरा वो हलफनामा
जिसमें कहना चाह रहा हूँ
इस वक्त मुझे तुम्हारी सख्त जरूरत है
वक्त की चालाकियों में मिट रहें हरफ
बस एक लफ्ज़ बचा पाया हूँ बड़ी मुश्किल से

'ईश्वर मेरी मदद करें'।

©डॉ.अजित

2 comments:

शिवम् मिश्रा said...

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " सुपरहिट फिल्मों की सुपरहिट गलतियाँ - ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

Asha Joglekar said...

बहोत खूब।