समन्दर से नदी पूछती है
तुम्हारे तल पर रहती है क्या
तुम्हारी प्रेमिका?
समन्दर कहता है
मैं सतह के अधीन हूँ
नही देख पाता
तल पर कौन रहता है
नदी विश्वास कर लेती है
इस बात पर
और देखना शुरू कर देती है अपना तल
नदी के किनारे पर कौन रहता है
नही जान पाती नदी फिर
नदी का किनारा
समन्दर को नही जानता
मगर फिर भी रहता नाराज़ उससे
समन्दर का तल नदी की प्रतिक्षा करता है
वो नही पहुँच पाती वहां तक
दोनों अपने अनुमानों के सहारे मिलते है
और खो जाते है एकदिन
जानकर अनजान रह जाना
इसी को कहा जा सकता शायद
समन्दर और नदी की ये बात
जो जानता है
वो नही बताता दोनों को
लापरवाही या चालाकी
इसी को कहा जा सकता है शायद।
©डॉ.अजित
तुम्हारे तल पर रहती है क्या
तुम्हारी प्रेमिका?
समन्दर कहता है
मैं सतह के अधीन हूँ
नही देख पाता
तल पर कौन रहता है
नदी विश्वास कर लेती है
इस बात पर
और देखना शुरू कर देती है अपना तल
नदी के किनारे पर कौन रहता है
नही जान पाती नदी फिर
नदी का किनारा
समन्दर को नही जानता
मगर फिर भी रहता नाराज़ उससे
समन्दर का तल नदी की प्रतिक्षा करता है
वो नही पहुँच पाती वहां तक
दोनों अपने अनुमानों के सहारे मिलते है
और खो जाते है एकदिन
जानकर अनजान रह जाना
इसी को कहा जा सकता शायद
समन्दर और नदी की ये बात
जो जानता है
वो नही बताता दोनों को
लापरवाही या चालाकी
इसी को कहा जा सकता है शायद।
©डॉ.अजित
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