Monday, March 27, 2017

गाँव

कहीं दूर हमारी स्मृतियों का
एक गाँव है
जहां थोड़ी धूप थोड़ी छाँव है
एक पगडण्डी उस तरफ जाती है
जहां रास्ता खत्म होता है
और मंजिल नजर आती है

ये गाँव इतनी दूर है
कि हम पहुँच जाते है पल भर में
ये गाँव इतना नजदीक है
देख नही पाते फिर भी उम्र भर में

स्मृतियों के गाँव में
बेवकूफियों का एक टीला है
प्यार में पल पल मरते-जीते
अहसासों का भी एक कबीला है

हम जब खुद से खफा होते है
चाहे अनचाहे बस यहां होते है
दर दर भटकते थक जाते
जब मन के पाँव
किसी आंगन में यहीं मिल पाती
फिर ठंडी छाँव

देस-बिदेस रहे कहीं भी
छूटे चाहे मन की मीत
यही वो गाँव है
छूटे न जिससे कभी प्रीत

स्मृतियों के गाँव के अनगिनत किस्से है
मिले बिछड़े लोगो के भी अपने हिस्से है

पुनर्पाठ:

स्मृतियों का गाँव अजनबी आबादी से भी आबाद हो सकता है और परिचय के संसार के बाद की वीरानियाँ भी यहां बची रह सकती है।ये गाँव हम सब के अंदर बसता है मन के भूगोल के हिसाब से इसका मानचित्र तय करना जरा मुश्किल काम है। इस गाँव जाने का रास्ता हम भी नही जानते कोई हाथ पकड़ कर ले जाता है फिर लौटना हमें खुद होता है,कभी मुस्कुराते हुए तो कभी उदास होते हुए।

©डॉ.अजित