Monday, March 27, 2017

भूलना

मुझे भूलने की कोशिश में
पहले उसने संपर्क कम किया
फिर खुद को मजबूत किया
और बाद में खींच दी एक रेखा
जिसके आर पार
नही देख सकते थे हम
एक दूसरे की शक्ल

सम्बन्धो की कर्क रेखा पर
कोई बाड़ ऐसी न थी
जिससे रोका जा सकता हो
यादों की पुरवाई को
बस यही एकमात्र
तकलीफदेह बात थी

मुझे भूलना उसने
एक चुनौती की तरह लिया
और भूल गई जिद करके
वो जिद की इतनी पक्की है
नही करेगी कभी याद भूलकर भी
ये बात पता है मुझे

मैं याद करता हूँ उसे तो
इतनी अच्छी बातें याद आती है
उदासी में भी मुस्कुरा पड़ता हूँ
तल्खियां सब लगने लगती है हास्यास्पद

वो मुझे भूल गई है हमेशा के लिए
ऐसा भी नही है
हमेशा के लिए कोई
किसी को नही भूल पाता है
बस आजकल वो याद नही करती मुझे

जब याद आती है मुझे
उसके भूलने को कर लेता हूँ याद
फिर भूल जाता हूँ
खुद का वजूद
फिर न उसकी याद आती है
न खुद की

भूलना अतीत का बुद्धिवादी अनुवाद है
जिसका कभी पाठ नही होता है
जिल्द चढ़ाकर रख दिया जाता है जिसे
रिश्तों के अजयाबघर में।

©डॉ.अजित

1 comment:

सुशील कुमार जोशी said...

हमेशा की तरह बढ़िया।