Tuesday, May 16, 2017

दूरी

उसने कहा
तुम्हें स्त्री से बात करनी नही आती
मैंने पूछा
कैसे की जाती है स्त्री से बात?

ये किसी से पुरुष से पूछना
मुझसे नही,उसने हंसते हुए कहा

मेरे पास कोई ऐसा पुरुष नही है
जिससे ले सकूं ये ज्ञान
मैंने अपनी असमर्थता जाहिर की

इस पर थोड़ा गम्भीर होकर उसने कहा

स्त्री से ठीक वैसे की जाती है बात
जैसे कोई रास्ता पूछता है मुसाफिर
जैसे बादल बरसता है
जंगल मे अलग और शहर में अलग
जैसे बच्चा करता है जिद
जैसे दर्द को छिपाता है एक नव वयस्क
जैसे धरती से पूछा जाता है उसका जलस्तर

मैनें कहा यदि मैं
इस तरह न कर पाऊँ बात तो?

फिर एक स्त्री तुम्हें सुनती है
और मुस्कुराती है मन ही मन
और करती है ईश्वर से प्रार्थना
तुम्हें दुनियादारी से बचाने की

वो फिर नही सुन पाती
तुम्हारी कोई लौकिक बात
वो सौंपती है अपनी
अधिकतम सद्कामनाएं
और ढ़ेर सारा अमूर्त प्रेम
तुमसे एक दूरी की शक्ल में।

© डॉ. अजित

2 comments:

सुशील कुमार जोशी said...

सुन्दर।

डॉ. दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 18.05.2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2633 में दिया जाएगा
धन्यवाद