हमनें थोड़ी देर राजनीति की बातें की
हर बहस बीच आधी अधूरी छोड़ी
गोया हमारे पास सब समस्याओं का समाधान है
मगर हमारी मानने वाला कोई नही है
फिर कुछ कॉमन फ्रेंड्स की निंदा का सुख लिया
दोस्तों की अनुपस्थिति में उनकी बातें
ये बताती रही कि वो अभी भी
कितने बचे हुए है
हमारी जिंदगियों में
वैचारिक बातों से ऊबकर
हम अतीत में खो गए
और याद करने लगे अपनी भावुक मूर्खताएं
बीच-बीच में याद करते बदलता मौसम
हैरत से देखतें गए विकास के
रियल एस्टेट संस्करण को
दिन में थोड़ी शराब भी पी
तोड़कर नैतिकता के सारे आवरण
दिन ढ़लता गया और हमारी बातें होती गई बोझिल
बीच बीच में हम केवल चुपचाप देखते रहें
एक दूसरे की शक्लें
ऐसा करने को क्या कहते है कविता में
नही है मुझे मालूम
शाम तक जब लगभग सारे किस्से तमाम हुए
फिर थोड़ी शराब पी
रात को सोने से पहले
हम साफ कर देना चाहतें थे
यादों की स्लेट
सोने से पहले हमनें देखा एक दूसरे का चेहरा
हल्के से मुस्कुराए
और सो गए बिन शुभ रात्रि कहे
एक उल्लासित दिन के बाद
ये सबसे शुभ रात थी हमारी
क्योंकि
इस रात नही आया कोई ख्वाब
अतृप्त कामना का
हम सोते गए बेसुध
जैसे इस नींद की तलाश में
मुद्दत से भटक रहे थे हम
सुबह जगे और निकल गए
अपने अपने रास्तों पर
हमनें एकदूसरे को विदा नही कहा
और इसलिए नही कहा
हमें फिर मिलना था किसी दिन
ठीक इसी तरह
क्यों मिलना था नही जानता था कोई
इसलिए बचा लिया विदा
और मुड़ गए उन रास्तों पर
जो आपस में कहीं नही मिलते।
©डॉ. अजित
हर बहस बीच आधी अधूरी छोड़ी
गोया हमारे पास सब समस्याओं का समाधान है
मगर हमारी मानने वाला कोई नही है
फिर कुछ कॉमन फ्रेंड्स की निंदा का सुख लिया
दोस्तों की अनुपस्थिति में उनकी बातें
ये बताती रही कि वो अभी भी
कितने बचे हुए है
हमारी जिंदगियों में
वैचारिक बातों से ऊबकर
हम अतीत में खो गए
और याद करने लगे अपनी भावुक मूर्खताएं
बीच-बीच में याद करते बदलता मौसम
हैरत से देखतें गए विकास के
रियल एस्टेट संस्करण को
दिन में थोड़ी शराब भी पी
तोड़कर नैतिकता के सारे आवरण
दिन ढ़लता गया और हमारी बातें होती गई बोझिल
बीच बीच में हम केवल चुपचाप देखते रहें
एक दूसरे की शक्लें
ऐसा करने को क्या कहते है कविता में
नही है मुझे मालूम
शाम तक जब लगभग सारे किस्से तमाम हुए
फिर थोड़ी शराब पी
रात को सोने से पहले
हम साफ कर देना चाहतें थे
यादों की स्लेट
सोने से पहले हमनें देखा एक दूसरे का चेहरा
हल्के से मुस्कुराए
और सो गए बिन शुभ रात्रि कहे
एक उल्लासित दिन के बाद
ये सबसे शुभ रात थी हमारी
क्योंकि
इस रात नही आया कोई ख्वाब
अतृप्त कामना का
हम सोते गए बेसुध
जैसे इस नींद की तलाश में
मुद्दत से भटक रहे थे हम
सुबह जगे और निकल गए
अपने अपने रास्तों पर
हमनें एकदूसरे को विदा नही कहा
और इसलिए नही कहा
हमें फिर मिलना था किसी दिन
ठीक इसी तरह
क्यों मिलना था नही जानता था कोई
इसलिए बचा लिया विदा
और मुड़ गए उन रास्तों पर
जो आपस में कहीं नही मिलते।
©डॉ. अजित
2 comments:
सुन्दर।
सुन्दर रचना
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