सफ़र की कविताएँ
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मेरे
पास एक बैग है
उसमे
दो जोड़ी कपड़े है
बैग
मेरे कंधे पर है
मगर
मैं सपनो की मजदूरी करने निकला हूँ
इसलिए
मेरे पैर ज़मीन के अन्दर धंसे है
आसमान
यह देख मुस्कुराता है
और
मुझे याद आता है अपना मनुष्य होना.
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मेरे
पास कुछ पते है
उन
पतों का सही होना थोड़ा संदिग्ध है
मेरे
पास कुछ पते है
मेरे
पास इस बात से उपजा एक हौसला है
मैं
उन पतों पर शायद ही कभी जाऊँगा
मुझे
अपना हौसला हर हाल में बचाना है.
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बस
का कंडक्टर पूछता है मुझसे
कहाँ
जाना है?
मैं
तत्परता से इसका जवाब देने से चूक जाता हूँ
जब
वो थोड़ा आगे बढ़ जाता है
फिर
मैं एक शहर का नाम बताता हूँ
वो
देखता है मुझे लगभग वैसे
जैसे
बिन टिकिट कहीं जाना चाहता हूँ मैं
सफ़र
में तत्परता से चूकने पर
मनुष्य
और गति
कभी
नही करती माफ.
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जहां
मैं कल था
वहां
अब मैं कब आउंगा
नही
बता पता मुझे
जहां
मैं आज हूँ
वहां
पहले कभी नही आया मैं
जहां
मैं कल जाऊँगा
वहां
कभी दुबारा नही जाना चाहता मैं
मेरे
मन में जितने भी नकार है
वही
मेरी यात्राओं का सच और भविष्य है.
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सफ़र
में भूख लगती है
तो
याद आता है चना चबैना
प्यास
लगती है तो
याद
आती है खाली फेंकी गई
कोल्ड
ड्रिंक की बोतल
सफर
के दौरान
कुछ
यादें आती है सिलसिलेवार
फिर
नही याद आती
भूख
और प्यास.
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©
डॉ. अजित
4 comments:
सपनों की मजदूरी ...
मैं सपने बेचती हूँ - आँगन में बसी तुलसी की तरह
मिट्टी के सोंधे चूल्हे की तरह
वाह।
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 03-08-2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2686 में दिया जाएगा
धन्यवाद सहित
बहुत खूब...
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