कुछ
लड़ाईयों को
समाप्त
किया जाना चाहिए था
समय
रहते
चाहे
कितना ही प्रेम क्यों न रहा हो
ऐसी
लड़ाईयां एक दिन लील लेती थी
बचे
हुए अधिकार को
एक
बादल का अकेला टुकडा
हवा
के भरोसे आसमान में रह नही पाता
बादलों
की लड़ाई उसे
कर
देती है इस कदर अकेला
वो
दौड़ पड़ता है सूरज की तरफ नंगे पैर
लड़ाई
को खत्म करने के लिए
धरती
करना चाहती है कोशिश
मगर
उसके पैर समंदर में धंसे है
ये
बची हुई लड़ाईयां
एकदिन
करती है मिलकर शिकार
इनके
विजय उत्सव में
भले
कोई न होता हो शामिल
ये
कर देती है मनुष्य को
इस
कदर अकेला
कि
वो भूल जाता है
हंसते
हुए रोना
और
रोते-रोते हंसना.
©
डॉ. अजित
3 comments:
बहुत सुन्दर।
... :)
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