Sunday, February 4, 2018

आदर

मेरे हृदय में इतना भर जगह थी
जहाँ आधी तुम रह सकती थी
आधी जगह अनारक्षित थी
मगर मेरे किसी काम की नही थी
मैंने आधी जगह तुम्हें दे दी

इसके बाद अपने हृदय में
नही देख पाया कभी झांककर
कि तुम वहां खुश हो या उदास

हम समानांतर चलते हुए
बना रहे थे एक वृत्त
जिसे हम चलना समझ रहे थे
वो एक चक्कर भर था
जो लौट आता था एकदिन
प्रस्थान बिंदु पर

हमें एकदूसरे से कोई शिकायत नही है
यह खुद में एक बड़ी शिकायत है
जिस पर नही की हमनें कोई बात

हमारी बातें इतनी एकनिष्ठ है
वो जाती है मगर लौटकर नही आती
ऐसी बातों के भरोसे हमे थी उम्मीद
कि बचा रहेगा हमारा प्रेम

हमारे मध्य जो बचा रहा
प्रेम से मिलती है उसकी शक्ल
इसलिए प्रेम को गुमशुदा होने में रही आसानी

हमारी अपने हिस्से की आसानियाँ चुनी
यह एक उदास करने वाली बात है
मगर इस पर मुस्कुरा रहे है हम

इससे पहले हँसना लगने लगे अभिनय
हमें तोलने होंगी अपनी-अपनी खुशी
बांटने होंगे अपने-अपने गम
खोजनी होंगे सांझी नींद

ये आहत प्रेम का उपचार नही
यह प्रेम का आदर भर होगा
जिसे हमेशा के लिए भूल गए है हम.


© डॉ. अजित 

2 comments:

रेणु said...

गद्य काव्य में अनुपम जीवन दर्शन !!!!!!

प्रियंका सिंह said...

आपकी कविताएं मुझे अन्यत्र भावभूमि तक ले जाती है ....