बसंतराग
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बसंत
का रंग ग्रे है
पीले
रंग का बसंत
अब
केवल कविताओं में मिलेगा
जो
मन राग की चासनी में डूबे हैं
वो
दृष्टिबंधन के भी है शिकार
वो
बता सकते है
हर
रंग को पीला
बसंत
का रंग ग्रे है
ये
बात मुझे उसने बतायी
जिसने
कभी रंगो का किया था नामकरण.
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बसंत
पतझड़ की भूमिका है
कह सकते है बसंत को
पतझड़
का पूर्व पाठ भी
बसंत
पतझड़ को नही करता याद
और
पतझड़ कभी भूल नही पाता
बसंत.
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तुमनें
कहा
हम
इस बसंत में बिछड़ रहे है
तो
फिर किस बसंत में मिलेंगे हम
मैंने
कहा
बसंत
के बिछड़े मिला करते है
केवल
पतझड़ में.
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धरती
नाचती है बसंत में
आसमान
रोता है बसंत में
दो
एक साथ जब
नाचते
और रोते है
तब
आता है
असली
बसंत.
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कोई
देता है उदाहरण
सुनाता
है यह गीत
‘मन
रे तू काहे न धीर धरे’
मैं
बुदबुदाता हूँ
आँखों
में एक नमी के साथ
‘शायद
आ गया है फिर से बसंत’ .
©
डॉ.अजित
2 comments:
वाह
अहा .... ये बिछड़ना कल्पना
तो नहीं
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