Tuesday, September 17, 2019

वेग

कभी नदियों के वेग से
तराशे हुए पत्थर देखना
कितने स्वच्छ निर्मल
और पुनीत नजर आएंगे

निरंतर चोट से बने कटाव
गहरे मगर साफ होते है

चोट देना हर बार
हिंसा नही होती हर बार
किसी के पास जाकर
बार-बार वापस लौटना

मांग करता है
एक खास किस्म की तैयारी की

दरअसल यह
एक अभ्यास है
उस भविष्य का
जब पत्थर रह जाता है अकेला
और वेग को चुनना पड़ता है
एक नया पत्थर
सतत चोट के लिए

यह बात प्रेम पर भी
लागू की जा सकती है

बशर्ते पत्थर और नदी
का नाम बताने का
आग्रह न किया जाए।

© डॉ. अजित

3 comments:

सुशील कुमार जोशी said...

सुन्दर

मन की वीणा said...

बशर्ते पत्थर और नदी
का नाम बताने का
आग्रह न किया जाए।
लाजवाब!!

Rohitas Ghorela said...

अंतिम
4 पंक्तियां जान है कविता की।
बेहद प्यारी रचना।


पधारें अंदाजे-बयाँ कोई और