कभी नदियों के वेग से
तराशे हुए पत्थर देखना
कितने स्वच्छ निर्मल
और पुनीत नजर आएंगे
निरंतर चोट से बने कटाव
गहरे मगर साफ होते है
चोट देना हर बार
हिंसा नही होती हर बार
किसी के पास जाकर
बार-बार वापस लौटना
मांग करता है
एक खास किस्म की तैयारी की
दरअसल यह
एक अभ्यास है
उस भविष्य का
जब पत्थर रह जाता है अकेला
और वेग को चुनना पड़ता है
एक नया पत्थर
सतत चोट के लिए
यह बात प्रेम पर भी
लागू की जा सकती है
बशर्ते पत्थर और नदी
का नाम बताने का
आग्रह न किया जाए।
© डॉ. अजित
तराशे हुए पत्थर देखना
कितने स्वच्छ निर्मल
और पुनीत नजर आएंगे
निरंतर चोट से बने कटाव
गहरे मगर साफ होते है
चोट देना हर बार
हिंसा नही होती हर बार
किसी के पास जाकर
बार-बार वापस लौटना
मांग करता है
एक खास किस्म की तैयारी की
दरअसल यह
एक अभ्यास है
उस भविष्य का
जब पत्थर रह जाता है अकेला
और वेग को चुनना पड़ता है
एक नया पत्थर
सतत चोट के लिए
यह बात प्रेम पर भी
लागू की जा सकती है
बशर्ते पत्थर और नदी
का नाम बताने का
आग्रह न किया जाए।
© डॉ. अजित
3 comments:
सुन्दर
बशर्ते पत्थर और नदी
का नाम बताने का
आग्रह न किया जाए।
लाजवाब!!
अंतिम
4 पंक्तियां जान है कविता की।
बेहद प्यारी रचना।
पधारें अंदाजे-बयाँ कोई और
Post a Comment