Thursday, September 9, 2010

सच

रिश्तों मे इल्जाम लगाना नही आया

खुद को बेचने तो निकला पर

दाम लगाना नही आया

छोड आया था उसको सोते हुए

ये सोचकर एक मुद्दत से कोई ख्वाब नही आया

रुठ जाने की आदत उसकी पुरानी थी

पर इस बार कोई मनाने नही आया

दूनिया को समझने की बात क्या

उसे खुद को समझाना नही आया

दिल के ज़ज्बात सच्चाई से कह दिए

रो कर उन्हे सच्चा करना नही आया

तन्हाई का सबब ये निकला

भीड मे उसको अभी चलना नही आया...।

डा.अजीत

2 comments:

शोभा said...

बहुत सुन्दर।

ZEAL said...

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दिल के ज़ज्बात सच्चाई से कह दिए

रो कर उन्हे सच्चा करना नही आया

wonderful !
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