रिश्तों मे इल्जाम लगाना नही आया
खुद को बेचने तो निकला पर
दाम लगाना नही आया
छोड आया था उसको सोते हुए
ये सोचकर एक मुद्दत से कोई ख्वाब नही आया
रुठ जाने की आदत उसकी पुरानी थी
पर इस बार कोई मनाने नही आया
दूनिया को समझने की बात क्या
उसे खुद को समझाना नही आया
दिल के ज़ज्बात सच्चाई से कह दिए
रो कर उन्हे सच्चा करना नही आया
तन्हाई का सबब ये निकला
भीड मे उसको अभी चलना नही आया...।
डा.अजीत
2 comments:
बहुत सुन्दर।
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दिल के ज़ज्बात सच्चाई से कह दिए
रो कर उन्हे सच्चा करना नही आया
wonderful !
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