रात के स्याह सपनें
की स्याह सच्चाई
चांद के आधे होने का सच
और मेरे वजूद की जिरह का सवाल
कितना वाजिब है
यह सोचने से बेहतर है
रात पर तब्सरा करे
सुबह की नकल करते हुए
रोशनी पैदा करे
और हकीकत के हर पहलू
को जानकर अनजान बन जाने का
नाटक करे
ताकि अपनी नज़र वो
सवाल न कर सकें
जिनके जवाब वक्त के हिसाब से
बेहद जरुरी है
लेकिन अभी सही वक्त नही है
उन हरफो को बांचने का
जिनमे किस्सा है
मेरी-तेरी बर्बादी का...
न सलाह
न शिकायत और न नसीहत
अब वक्त है
बेवक्त नमाज़ पढने का
बिना अज़ान की परवाह किए
दुआ करने का
ताकि सलामत रह सके
एक हादसा
हकीकत मे...।
डा.अजीत
4 comments:
बहुत ही उच्चकोटि का लेखन है थोड़ा जटिल परन्तु ,,,,बहुत अच्छा !!
अथाह...
dhnyvaad !!!
utkrusht sochavum abhivykti.
सुन्दर प्रस्तुति
.
हर पहलु को जानकर भी ,अनजान बन जाते हैं लोग।
सबकी नज़र से बचकर भी , खुद से शर्मसार होते हैं लोग ।
हर सच जो चाँद की तरह आधा होता है,
उतना काफी है हकीकत से पर्दा हटा देने को।
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