Friday, October 10, 2014

आइना

सबसे निराशा के पलों में
आत्महत्या जैसा कोई विचार नही आता
उत्सव कभी मन में कोई
उत्साह नही जगाता
अतीत की गति
और भविष्य का अनियोजन
वर्तमान को जीने की वजह देता है
परन्तु वर्तमान भी नीरवता से भरा है
भीड़ से दूरी है
एकांत से एकांत जरूरी है
सपनों से एक सुरक्षित दूरी है
जीवन के प्रश्न
समाधान नही प्रति प्रश्न तलाशते है
और प्रश्नों की भीड़ में
उत्तर अपनी प्रासंगिकता खोते जाते है
मन के वैज्ञानिकों के हिसाब से
यह चक्रीय अवसाद है
परिजन  इसे प्रमाद समझते है
और दोस्त पलायन
स्पष्टीकरण की प्रक्रिया
खुद को सही ठहराने की युक्ति है
और दुनिया में एक ही समय पर
दो लोग एक साथ सही सिद्ध नही हो सकते
इसलिए स्वीकार कर लेता हूँ
नसीहतों की रोटी
सलाह का पानी और
शुभचिंताओं का नमक
एक अरसे से इन्हीं पर जिन्दा हूँ
जिन्दा हूँ यह जानने के लिए एक सूत्र सबको ज्ञात है
वो यदा-कदा छेड़ देते है
दोस्ती दर्शन और मन की बातें
फिर उनका मनोरंजन
और मेरा विरेचन दोनों एक साथ चलता है
इसके सुर प्रवचन से सधे होते है
इसलिए कभी कभी भ्रम हो जाता है
ज्ञानी ध्यानी होने का
मुझे नही
मुझमे रूचि रख रहें लोगो को
दरअसल सच तो यह है
मेरी खुद में उतनी ही रूचि बची है
जितना दाल में नमक
मेरे इर्द गिर्द जो भीड़ जमा है
उन्हें मै आईना लगता हूँ कभी कभी
इसलिए
मेरी उपयोगिता में रोशनी की बड़ी भूमिका है
वो रोशनी खरीद लातें है
और मै साफ़ दिखने लगता हूँ ।
© डॉ.अजीत

1 comment:

Anonymous said...

चक्रीय अवसाद का उपचार स्नेह का ओव्हरडोज है