सबसे निराशा के पलों में
आत्महत्या जैसा कोई विचार नही आता
उत्सव कभी मन में कोई
उत्साह नही जगाता
अतीत की गति
और भविष्य का अनियोजन
वर्तमान को जीने की वजह देता है
परन्तु वर्तमान भी नीरवता से भरा है
भीड़ से दूरी है
एकांत से एकांत जरूरी है
सपनों से एक सुरक्षित दूरी है
जीवन के प्रश्न
समाधान नही प्रति प्रश्न तलाशते है
और प्रश्नों की भीड़ में
उत्तर अपनी प्रासंगिकता खोते जाते है
मन के वैज्ञानिकों के हिसाब से
यह चक्रीय अवसाद है
परिजन इसे प्रमाद समझते है
और दोस्त पलायन
स्पष्टीकरण की प्रक्रिया
खुद को सही ठहराने की युक्ति है
और दुनिया में एक ही समय पर
दो लोग एक साथ सही सिद्ध नही हो सकते
इसलिए स्वीकार कर लेता हूँ
नसीहतों की रोटी
सलाह का पानी और
शुभचिंताओं का नमक
एक अरसे से इन्हीं पर जिन्दा हूँ
जिन्दा हूँ यह जानने के लिए एक सूत्र सबको ज्ञात है
वो यदा-कदा छेड़ देते है
दोस्ती दर्शन और मन की बातें
फिर उनका मनोरंजन
और मेरा विरेचन दोनों एक साथ चलता है
इसके सुर प्रवचन से सधे होते है
इसलिए कभी कभी भ्रम हो जाता है
ज्ञानी ध्यानी होने का
मुझे नही
मुझमे रूचि रख रहें लोगो को
दरअसल सच तो यह है
मेरी खुद में उतनी ही रूचि बची है
जितना दाल में नमक
मेरे इर्द गिर्द जो भीड़ जमा है
उन्हें मै आईना लगता हूँ कभी कभी
इसलिए
मेरी उपयोगिता में रोशनी की बड़ी भूमिका है
वो रोशनी खरीद लातें है
और मै साफ़ दिखने लगता हूँ ।
© डॉ.अजीत
आत्महत्या जैसा कोई विचार नही आता
उत्सव कभी मन में कोई
उत्साह नही जगाता
अतीत की गति
और भविष्य का अनियोजन
वर्तमान को जीने की वजह देता है
परन्तु वर्तमान भी नीरवता से भरा है
भीड़ से दूरी है
एकांत से एकांत जरूरी है
सपनों से एक सुरक्षित दूरी है
जीवन के प्रश्न
समाधान नही प्रति प्रश्न तलाशते है
और प्रश्नों की भीड़ में
उत्तर अपनी प्रासंगिकता खोते जाते है
मन के वैज्ञानिकों के हिसाब से
यह चक्रीय अवसाद है
परिजन इसे प्रमाद समझते है
और दोस्त पलायन
स्पष्टीकरण की प्रक्रिया
खुद को सही ठहराने की युक्ति है
और दुनिया में एक ही समय पर
दो लोग एक साथ सही सिद्ध नही हो सकते
इसलिए स्वीकार कर लेता हूँ
नसीहतों की रोटी
सलाह का पानी और
शुभचिंताओं का नमक
एक अरसे से इन्हीं पर जिन्दा हूँ
जिन्दा हूँ यह जानने के लिए एक सूत्र सबको ज्ञात है
वो यदा-कदा छेड़ देते है
दोस्ती दर्शन और मन की बातें
फिर उनका मनोरंजन
और मेरा विरेचन दोनों एक साथ चलता है
इसके सुर प्रवचन से सधे होते है
इसलिए कभी कभी भ्रम हो जाता है
ज्ञानी ध्यानी होने का
मुझे नही
मुझमे रूचि रख रहें लोगो को
दरअसल सच तो यह है
मेरी खुद में उतनी ही रूचि बची है
जितना दाल में नमक
मेरे इर्द गिर्द जो भीड़ जमा है
उन्हें मै आईना लगता हूँ कभी कभी
इसलिए
मेरी उपयोगिता में रोशनी की बड़ी भूमिका है
वो रोशनी खरीद लातें है
और मै साफ़ दिखने लगता हूँ ।
© डॉ.अजीत
1 comment:
चक्रीय अवसाद का उपचार स्नेह का ओव्हरडोज है
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