खुद से खफा हुए जाता हूँ
तुम पे फिदा हुए जाता हूँ
नजरें झुका कर उठाते हो
इल्म की किताब हुए जाता हूँ
बुलंदी से उतरना है जरुर
खुद में दफ़न हुए जाता हूँ
तन्हाई में जीना सीख लिया
खुद का कफन हुए जाता हूँ
दर्द अक्सर बढ़ा ये सोचकर
बेगुनाह जलावतन हुए जाता हूँ
© डॉ.अजीत
तुम पे फिदा हुए जाता हूँ
नजरें झुका कर उठाते हो
इल्म की किताब हुए जाता हूँ
बुलंदी से उतरना है जरुर
खुद में दफ़न हुए जाता हूँ
तन्हाई में जीना सीख लिया
खुद का कफन हुए जाता हूँ
दर्द अक्सर बढ़ा ये सोचकर
बेगुनाह जलावतन हुए जाता हूँ
© डॉ.अजीत
2 comments:
बढ़िया !
लाजवाब ग़ज़ल है ...
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