हमारी उम्र में सीधें सीधे
आठ साल का चक्रव्यूह सा
अंतराल रहा होगा
कौन छोटा कौन बड़ा
यह कहना मुश्किल था
जिंदगी के मध्यांतर पर पहूंच
निर्णय लिया जा सकता था
इस बात का
मगर
तब तक धैर्य ने जवाब दे दिया
अहसासों की जगह वक्त ने ले ली
समय का बोध
बुद्धि की नियोजित चाल थी
संतुष्टि और असंतुष्टि का मिला जुला मन
उस वक्त की सबसे बड़ी चालाकी
कही जा सकती है
जिसे देख
हंसा जा सकता था भीड़ में
रोया जा सकता था एकांत में
रोने और हंसने के बीच
उम्र बीत रही थी आहिस्ता आहिस्ता
मगर वक्त ठहरा हुआ था
उस इन्तजार में
जब हमें जन्म लेना था
एक ही दिन
समान घड़ी और समान नक्षत्र में
इस ब्रह्मांडीय घटना का
घटित होना
चमत्कार से कम न था
किसी अभागे पुरुष की तरह
चमत्कार का इन्तजार करना
सबसे बोझिल काम था
इन्तजार दार्शनिक शून्य से भरा होता है
पुरुषार्थ पर प्रश्नचिन्ह के साथ
ये तभी ज्ञात हुआ
जब उम्र घट रही थी
और वक्त बढ़ रहा था
और हम तुम ठहरे हुए थे
अपनी अपनी
मान्यताओं के घने जंगल में
एकदम अकेले।
© डॉ. अजीत
आठ साल का चक्रव्यूह सा
अंतराल रहा होगा
कौन छोटा कौन बड़ा
यह कहना मुश्किल था
जिंदगी के मध्यांतर पर पहूंच
निर्णय लिया जा सकता था
इस बात का
मगर
तब तक धैर्य ने जवाब दे दिया
अहसासों की जगह वक्त ने ले ली
समय का बोध
बुद्धि की नियोजित चाल थी
संतुष्टि और असंतुष्टि का मिला जुला मन
उस वक्त की सबसे बड़ी चालाकी
कही जा सकती है
जिसे देख
हंसा जा सकता था भीड़ में
रोया जा सकता था एकांत में
रोने और हंसने के बीच
उम्र बीत रही थी आहिस्ता आहिस्ता
मगर वक्त ठहरा हुआ था
उस इन्तजार में
जब हमें जन्म लेना था
एक ही दिन
समान घड़ी और समान नक्षत्र में
इस ब्रह्मांडीय घटना का
घटित होना
चमत्कार से कम न था
किसी अभागे पुरुष की तरह
चमत्कार का इन्तजार करना
सबसे बोझिल काम था
इन्तजार दार्शनिक शून्य से भरा होता है
पुरुषार्थ पर प्रश्नचिन्ह के साथ
ये तभी ज्ञात हुआ
जब उम्र घट रही थी
और वक्त बढ़ रहा था
और हम तुम ठहरे हुए थे
अपनी अपनी
मान्यताओं के घने जंगल में
एकदम अकेले।
© डॉ. अजीत
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