एक अनपढ़ आदमी
नही समझता
विकास का मूल्य
ऐसा कहते है
अर्थ और नीति के जानकार
वो धरती को
मां समझता है
और अपने पुरखों की निशानी
ये उसकी बड़ी मूर्खता है
जमीन पर नही
उसका कोई हक
रिश्तों और स्वामित्व के लिहाज़ से
दरअसल
वो जी रहा है
सरकार की कृपा पर
एक गैर कानूनन जिंदगी
विकास का एक ही मतलब है
किसी किस्म की बेदखली पर
उफ़ तक न करें
जीडीपी में यह उसका अधिकतम
योगदान हो सकता है
कुछ चालाक लोग
शहर से भाग जाना चाहते गाँव
मिट्टी में बीज नही
बोना चाहते है
सीमेंट और बजरी
ताकि खड़ा किया जा सके
कंक्रीट का जंगल
विकास की कोख बाँझ है
उसके पास नही है
अनपढ़ किसान को देने के लिए
दो वक्त की नून तेल रोटी
उसके पास है मुआवज़ा
सपनें की शक्ल में
जो किसान की पीठ पर
निर्वासन की मोहर लगा
उसे निर्यात करता है
मजदूरी के लिए
देर सबेर सरकार
हासिल कर ही लेगी जमीन
इसमें सन्देह नही है
सन्देह इस बात का है
अपनी मिट्टी से कटकर
वो दो दिन अमीर दिख सकता है
मगर जी नही सकता
बतौर इंसान
यह उसकी सबसे बड़ी कमजोरी है
जिसे साहेब नही समझते
ये कृषि प्रधान देश का
सबसे बड़ा दुर्भाग्य है।
© डॉ. अजीत
नही समझता
विकास का मूल्य
ऐसा कहते है
अर्थ और नीति के जानकार
वो धरती को
मां समझता है
और अपने पुरखों की निशानी
ये उसकी बड़ी मूर्खता है
जमीन पर नही
उसका कोई हक
रिश्तों और स्वामित्व के लिहाज़ से
दरअसल
वो जी रहा है
सरकार की कृपा पर
एक गैर कानूनन जिंदगी
विकास का एक ही मतलब है
किसी किस्म की बेदखली पर
उफ़ तक न करें
जीडीपी में यह उसका अधिकतम
योगदान हो सकता है
कुछ चालाक लोग
शहर से भाग जाना चाहते गाँव
मिट्टी में बीज नही
बोना चाहते है
सीमेंट और बजरी
ताकि खड़ा किया जा सके
कंक्रीट का जंगल
विकास की कोख बाँझ है
उसके पास नही है
अनपढ़ किसान को देने के लिए
दो वक्त की नून तेल रोटी
उसके पास है मुआवज़ा
सपनें की शक्ल में
जो किसान की पीठ पर
निर्वासन की मोहर लगा
उसे निर्यात करता है
मजदूरी के लिए
देर सबेर सरकार
हासिल कर ही लेगी जमीन
इसमें सन्देह नही है
सन्देह इस बात का है
अपनी मिट्टी से कटकर
वो दो दिन अमीर दिख सकता है
मगर जी नही सकता
बतौर इंसान
यह उसकी सबसे बड़ी कमजोरी है
जिसे साहेब नही समझते
ये कृषि प्रधान देश का
सबसे बड़ा दुर्भाग्य है।
© डॉ. अजीत
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