आठ कतरन: वाया पतझड़
---------------------------
स्थगित करता हूँ
तुम्हें पाना
कुछ काम
अगले जन्म के लिए
छोड़ता आया हूँ
अभी काट लेता हूँ
पिछले जन्म के
प्रारब्ध
तुमसे दूरी के शक्ल में।
***
ब्रह्माण्ड था मैं
तुम आकाशगंगा
इसलिए
नही देख पाए
एक दुसरे को
बाकि तो सब
अनुमान है
सबके अपनें अपनें।
***
मेरा पता
ठीक तुम्हारे कान के पीछे लिखा था
जिसे पढ़ने के लिए
रोशनी नही
स्पर्शों का लिपिबोध जरूरी था
अफ़सोस
तुम्हारे हाथ में कलम थी
इसलिए तुम्हारे खत मुझ तक पहूँचे
तुम नही।
***
तुम्हारे कोहनी पर
मैंने एक शिकायत लिख छोड़ी है
ताकि देख न पाओं
मेरा बचपना
मेरे अंदर इतनी ही
होशियारी शेष थी।
***
तुम्हारी अनामिका से
गहरी दोस्ती थी मेरी
हाथ मिलाते वक्त
दोनों को खुशी मिलती थी
तुम्हारे बाद
नमस्ते करने लगा हूँ सबसे
हाथ जोड़कर
शिष्टाचार का
एक क्रूर पक्ष यह भी था।
***
तुम्हारे काजल के डिब्बी के नीचे
एक जवाब लिखा था मैंने
तुम उसे कभी नही
पढ़ सकोगी
क्योंकि बेकार की चीज़ो में
तुम्हारी दिलचस्पी नही रहती
जवाब बेकार नही था
बस डिब्बी बेहद मामूली थी
तुमने फेंक दी होगी कब की
निर्वासन के लिए
सही चुनी मैनें।
***
चलो ! खुश रहो
अपनी बनाई दुनिया में
ऐसी सलाह तो दी जा सकती है
अक्सर सभी देते है
मगर
कोई खुश है या नही
ये देखने कोई नही जाता
इसलिए मुझे दुःख का
भाईचारा पसन्द है।
***
कभी चाहा था
तुम्हें ओक में भरके देखना
फिर चाहा
आचमन के जल सा चखना
अब चाहता हूँ
कपूर की तरह कैद करना
चाहतों का एक ही मतलब है
तुम्हें लगातार खोना
आज से बंद करता हूँ
तुम्हें चाहना।
© डॉ. अजीत
---------------------------
स्थगित करता हूँ
तुम्हें पाना
कुछ काम
अगले जन्म के लिए
छोड़ता आया हूँ
अभी काट लेता हूँ
पिछले जन्म के
प्रारब्ध
तुमसे दूरी के शक्ल में।
***
ब्रह्माण्ड था मैं
तुम आकाशगंगा
इसलिए
नही देख पाए
एक दुसरे को
बाकि तो सब
अनुमान है
सबके अपनें अपनें।
***
मेरा पता
ठीक तुम्हारे कान के पीछे लिखा था
जिसे पढ़ने के लिए
रोशनी नही
स्पर्शों का लिपिबोध जरूरी था
अफ़सोस
तुम्हारे हाथ में कलम थी
इसलिए तुम्हारे खत मुझ तक पहूँचे
तुम नही।
***
तुम्हारे कोहनी पर
मैंने एक शिकायत लिख छोड़ी है
ताकि देख न पाओं
मेरा बचपना
मेरे अंदर इतनी ही
होशियारी शेष थी।
***
तुम्हारी अनामिका से
गहरी दोस्ती थी मेरी
हाथ मिलाते वक्त
दोनों को खुशी मिलती थी
तुम्हारे बाद
नमस्ते करने लगा हूँ सबसे
हाथ जोड़कर
शिष्टाचार का
एक क्रूर पक्ष यह भी था।
***
तुम्हारे काजल के डिब्बी के नीचे
एक जवाब लिखा था मैंने
तुम उसे कभी नही
पढ़ सकोगी
क्योंकि बेकार की चीज़ो में
तुम्हारी दिलचस्पी नही रहती
जवाब बेकार नही था
बस डिब्बी बेहद मामूली थी
तुमने फेंक दी होगी कब की
निर्वासन के लिए
सही चुनी मैनें।
***
चलो ! खुश रहो
अपनी बनाई दुनिया में
ऐसी सलाह तो दी जा सकती है
अक्सर सभी देते है
मगर
कोई खुश है या नही
ये देखने कोई नही जाता
इसलिए मुझे दुःख का
भाईचारा पसन्द है।
***
कभी चाहा था
तुम्हें ओक में भरके देखना
फिर चाहा
आचमन के जल सा चखना
अब चाहता हूँ
कपूर की तरह कैद करना
चाहतों का एक ही मतलब है
तुम्हें लगातार खोना
आज से बंद करता हूँ
तुम्हें चाहना।
© डॉ. अजीत
No comments:
Post a Comment