Tuesday, February 24, 2015

मुलाक़ात

सुनों! अदिति
तुम्हारा एक हिस्सा
तुम्हारी मां के मन के गर्भनाल से
अभी तक जुड़ा हुआ है
तुम कभी आई भी नही
और तुममें जन्म भी ले लिया
भोर के स्वप्न की शक्ल में
वो स्वप्न मैनें सुना था
बेहद लापरवाही के साथ
मगर
एक दिन पाया
तुम जीवन्त हो
हमारे मध्य
चेतना के शास्वत पुंज के रूप में
जैसे नदी और पत्थर के बीच रेत
तुमनें बांध दिया
नेह का अटूट बन्धन
हमारे बीच
कुछ सांझे ख़्वाबों की बुनियाद
तुम्हारे नन्हें हाथों ने रखी थी
उन्हें जीने की कोशिस में
तुम अक्सर याद आती हो
रोजमर्रा की भागदौड़ में
जब बहुत कुछ छूटता जाता है
कपाल पर पुता होता है तनाव
तब तुम ठंडी ब्यार सी आती हो
और बढ़ने लगता है सब पूर्णता की ओर
हमारे मध्य
तुम्हारा होना
एक आश्वस्ति है
सपनों के जिंदा होने की
तुम्हारी एक मुक्कमल शक्ल है मेरे पास
और हमारे ख़्वाब का
एक तावीज़ तुम्हारे गलें में बाँध दिया है
ताकि तुम्हें अपेक्षाओं की नजर न लगे
फिलहाल
इतना काफी है
हमारे लिए
ये बात तुम सुन सको
इसके लिए
शब्दों को उड़ा रहा हूँ
मौन को बुला रहा हूँ
तुमसे अगली मुलाकात
वहीं पर होगी।

© डॉ.अजीत





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