Tuesday, May 26, 2015

दिशा

अब जब मुझमें
तुम्हारी दिलचस्पी
लगभग नही के बराबर बची है
ठीक इस वक्त
देना चाहता हूँ
तुम्हें एक मुट्ठी नमक
ताकि तुम समझ सको
खारेपन का मूल्य
प्यास की अनुपस्थिति में।
***
अब जब लगभग सब कुछ
निर्णय के मुहाने पर
खड़ा है
मांगना चाहता हूँ
तुमसें तुम्हारी खुशबू
ताकि महकती रहें
कुछ खट्टी मिट्टी यादें
तुम्हारी छाया में।
***
हमनें कभी नही मांगा
प्रेम में प्रतिदान
न मांगने का एक अर्थ
यह भी निकाला जा सकता है
अंदर से खाली नही थे हम
प्रेम कहां बसता फिर?।
***
चारों दिशाओं के अलावा
धरती की होती है अपनी एक दिशा
उसी का भरम ले जाता है
हमें उस तरफ
जहां से लौट नही पाते
मर कर भी हम।

© डॉ. अजीत 

1 comment:

सुशील कुमार जोशी said...

खट्टी मीठी कर लें ।

सुंदर ।