ख्यालों से निकलना गैरजरूरी समझता है
इश्क सच्चा हो तो मजबूरी भी समझता है
तन्हाई में रोकर भी क्या हुआ तुम्हें हासिल
वो आज भी तुम्हें पत्थरदिल समझता है
दिलों में फ़कत कुछ लम्हों का फांसला था
कमबख्त वो इसे भी मेरी दूरी समझता है
चलों बिछड़ जाए उसी मोड़ से हम दोनों
रास्ता भी मुसाफिर की मजबूरी समझता है
©डॉ.अजित
इश्क सच्चा हो तो मजबूरी भी समझता है
तन्हाई में रोकर भी क्या हुआ तुम्हें हासिल
वो आज भी तुम्हें पत्थरदिल समझता है
दिलों में फ़कत कुछ लम्हों का फांसला था
कमबख्त वो इसे भी मेरी दूरी समझता है
चलों बिछड़ जाए उसी मोड़ से हम दोनों
रास्ता भी मुसाफिर की मजबूरी समझता है
©डॉ.अजित
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