कुछ अलहदा से ख़्वाब थे वो
रोशनी के छूटे हुए कतरों के चश्मदीद गवाह
उनके माथे स्याह ठंडे थे
उनके लबो पर आह की नम खुश्की थी
दरख्तों के साये में उन्हें पनाह नही मिली थी
वो धूप की गोद से जबरदस्ती उतार दिए गए थे
दरिया के पास उनकी शिकायतों के मुकदमें थे
मगर वो खामोश बह रहा था
बिना किसी सुनवाई के
कुछ परिंदे मुखबिर बन गए थे अचानक
सपनों की तलाशी ली जा रही थी
ख़्वाबों की सरहदों पर
लम्हों में पिरोयी धड़कने जब बगावत कर बैठी
तब पता चला ये सुबह से पहली रात है
जहां अंधेरा चरागों को सुस्ताने की
नसीहत देने आया है
दुआ में हाथ उठे मगर लब खामोश रहें
सिलसिलों ने करवट ली तो
तुम्हें बहुत दूर पाया
इतनी दूर जहां से
खुली आँख से तुम्हें देखा नही जा सकता था
आँख मूँद कर तुम्हें देखनें की कोशिश की तो
इन्हीं ख़्वाबों की भूलभुलैय्या में खो गया
तुम्हें देखनें का मिराज़
अब तक का सबसे हसीं सदमा था।
© डॉ. अजित
रोशनी के छूटे हुए कतरों के चश्मदीद गवाह
उनके माथे स्याह ठंडे थे
उनके लबो पर आह की नम खुश्की थी
दरख्तों के साये में उन्हें पनाह नही मिली थी
वो धूप की गोद से जबरदस्ती उतार दिए गए थे
दरिया के पास उनकी शिकायतों के मुकदमें थे
मगर वो खामोश बह रहा था
बिना किसी सुनवाई के
कुछ परिंदे मुखबिर बन गए थे अचानक
सपनों की तलाशी ली जा रही थी
ख़्वाबों की सरहदों पर
लम्हों में पिरोयी धड़कने जब बगावत कर बैठी
तब पता चला ये सुबह से पहली रात है
जहां अंधेरा चरागों को सुस्ताने की
नसीहत देने आया है
दुआ में हाथ उठे मगर लब खामोश रहें
सिलसिलों ने करवट ली तो
तुम्हें बहुत दूर पाया
इतनी दूर जहां से
खुली आँख से तुम्हें देखा नही जा सकता था
आँख मूँद कर तुम्हें देखनें की कोशिश की तो
इन्हीं ख़्वाबों की भूलभुलैय्या में खो गया
तुम्हें देखनें का मिराज़
अब तक का सबसे हसीं सदमा था।
© डॉ. अजित
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