Monday, March 28, 2016

रास्तें

रास्तों के हिस्से में कुछ नही आया
वो महज़ दृष्टा थे
रास्तों का दुःख इसलिए भी भारी था
धरती और आसमान के बीच वो महीनता से फंसे थे
हवा कुछ किस्से जानती थी
जो रास्तों ने उसे बताए थे
जिन रास्तों पर चलकर दो लोग जुदा हुए
उन रास्तों की आँखें हमेशा के लिए खुली रह गई
मिट्टी उनकी नींद की दुआ करती तो
बारिश बरस पड़ती
रास्तों की आँख का पानी आसमान के यहां गिरवी था
बादल मौसम की अवांछित सन्ताने थी
जो बारिश के जरिए बहती थी रास्तों के कोने से
सब कुछ इतना जीवन्त था कि
किसी के षड्यंत्र की बू आती थी
जो रास्तें कहीं नही पहूँचे
वो अंत में जंगल बन गए
इसी जंगल में भटकर एकदिन
बन जाना था उसे किसी का रास्ता
वो रास्ता बाहर जाता कि अंदर
नही बता सकता कोई।

©डॉ.अजित

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