उसे अपनी पुकार पर
इतना यकीन था कि
वो बुलाएगा तो
तमाम अरुचियों नाराज़गियों के बावजूद
वो चली आएगी
भले उसके चेहरे पर उतना उत्साह न दिखे
मगर उसकी बातें
ठीक दवा के माफिक काम करेंगी
दरअसल ये यकीन नही
एक अधिकार था
जो उसने ले लिया बिना पूछे ही
वैसी भी पूछी वो बातें जाती है
जो वक्त के साथ धुंधला जाती है खुद ब खुद
भले उसने अपनी
पुकार को आजमाया नही
मगर उसे अपनी छाती पर जमाया जरूर
एक पौधे की तरह
जब जब बर्बाद रिश्तों की धूप उसे जलाती
वो दुबक जाता अपने ही अंदर
उसके अंदर केवल पथरीली जमीन नही थी
बल्कि उस पौधे की शीतल छाया भी थी
जो जड़ की तरफ से हरा था।
©डॉ. अजित
इतना यकीन था कि
वो बुलाएगा तो
तमाम अरुचियों नाराज़गियों के बावजूद
वो चली आएगी
भले उसके चेहरे पर उतना उत्साह न दिखे
मगर उसकी बातें
ठीक दवा के माफिक काम करेंगी
दरअसल ये यकीन नही
एक अधिकार था
जो उसने ले लिया बिना पूछे ही
वैसी भी पूछी वो बातें जाती है
जो वक्त के साथ धुंधला जाती है खुद ब खुद
भले उसने अपनी
पुकार को आजमाया नही
मगर उसे अपनी छाती पर जमाया जरूर
एक पौधे की तरह
जब जब बर्बाद रिश्तों की धूप उसे जलाती
वो दुबक जाता अपने ही अंदर
उसके अंदर केवल पथरीली जमीन नही थी
बल्कि उस पौधे की शीतल छाया भी थी
जो जड़ की तरफ से हरा था।
©डॉ. अजित
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