Friday, March 3, 2017

खालीपन

मुद्दत तक इतना खाली रहा हूँ मै
यदि कहूँ आज बिजी हूँ थोड़ा
सुनने वाले को लगता है
ये नया झूठ है मेरा
और बेवजह का भाव खा रहा हूँ

मैं सदा उपलब्ध रहा हूँ
फोन पर
असल में
सपने में
चिट्ठी पत्री में

मेरी सदा उपलब्धता
एक क्षेपक की तरह उपस्थित रही जीवन में

इतना खाली और औसत जीवन था मेरा
मेरे पास कई-कई साल नए लतीफे न होते
इतना कम घटना प्रधान  जीवन था मेरा
कि मै इतना ही बता सकता था रोचकता से
फलां दिन इतनी देर से बस मिली थी मुझे

निठल्लेपन के बर्तन में पानी को
शराब समझ कर पीता रहा हूँ मै
मेरी बातों में जो लचक बची है
ये उन्ही दिनों की देन है

मेरे पास कोई किस्सा ऐसा नही
जिस पर किसी को रश्क हो सके
मेरे पास अधिकतम बातें
बेवकूफी भरे सपनें देखने की हो सकती है
सपनों का पीछा करना मुझे कभी नही आया
मैं बदलता रहा हूँ सपनें
देशकाल और परिस्थिति के हिसाब से
जिसके लिए
सपनो ने कभी माफ नही किया मुझे

फोन पर कुछ ही देर में
दो वाक्य जकड़ लेते है
मेरी ज़बान
और बताओ...
सब बढ़िया....
या फिर खिसियाकर हंसने लगता हूँ
ताकि हंसी के शोर बढ़ जाए बात आगे

मैने बनाया खुद को आग्रह के समक्ष कमज़ोर
मीलों की यात्राएं केवल मेल मिलाप के लिए
मतलब की बात पर सिल गए होंठ
मैसेज भेजकर मांगे पैसे उधार
और भी किस्म किस्म की मदद

दोस्तों में रहा चिट्ठीबाज़
जताई सारी नाराज़गियां
खतों के जरिए

दरअसल,
मैं उपलब्ध था
मैं उपस्थित था
मैं तत्पर था
मैं कतार में था
मैं विचार में था
मैं व्यवहार में था

इन सब का एक अर्थ यह भी था
मैं अपने खालीपन के साथ
अपने संपर्कों के प्यार में था

जिसे कुछ समझ पाएं
और कुछ नही
जो नही समझ पाएं
उनसे कोई शिकायत नही मुझे
उन्होंने मुझे चुना या मैंने उन्हें
इनसे ज्यादा जरूरी यह था
मुझे वक्त ने चुना था
सुनने के लिए

सुनाने के विषय सदा से कम रहे मेरे पास
इस बात का खेद है मुझे
मेरी अनुपस्थिति में
शायद ही किसी को याद आता हो
मेरा कोई किस्सा

मैं लोगो के जीवन में शामिल रहा
एक कविता तरह
इसलिए भी लोगो के जीवन में
कहानी की तरह याद नही
कविता की तरह विस्मृत रहा हूँ मै।

©डॉ.अजित

1 comment:

सुशील कुमार जोशी said...

कविता की तरह होना चाहिये शायद

सुन्दर ।