सदी की सबसे कमजोर कविता
लिखने का तमगा
समीक्षकों ने दिया
आलोचकों की दृष्टि से
मेरी कविता में
न शिल्प मजबूत था
और न सम्वेदना
सम्पादकों को उसके स्तरीय होंने
पर सदैव संदेह रहा
समकालीन कवि मित्रों के मन में
कभी साहित्यिक असुरक्षा नही उपजी
मेरी कविता पढ़कर
वह उनकी पारस्परिक प्रशंसा की
चर्चा की पात्र भी न बनी
प्रकाशकों ने लगभग हिकारत के भाव से
कविता और कवित्व दोनों को
खारिज़ किया
किसी विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में
शायद ही वह कभी शामिल हो
बावजूद इन सबके
मै आज भी कविता लिखता हूँ
और तब तक लिखता रहूँगा
जब तक खुद को टटोलने की
हिम्मत मुझमें शेष है
मेरे हिसाब से कविता लिखी नही जाती
बल्कि कविता खुद फूटकर निकल पड़ती है
मन के ग्लेशियर से
उसे कोई कविता माने या माने
यह उसकी समझ का मामला है
लेकिन
मेरे जैसे बहुत से अ-कवियों के लिए
कविता खुद से बात करने का तरीका भर है।
© डॉ. अजीत
लिखने का तमगा
समीक्षकों ने दिया
आलोचकों की दृष्टि से
मेरी कविता में
न शिल्प मजबूत था
और न सम्वेदना
सम्पादकों को उसके स्तरीय होंने
पर सदैव संदेह रहा
समकालीन कवि मित्रों के मन में
कभी साहित्यिक असुरक्षा नही उपजी
मेरी कविता पढ़कर
वह उनकी पारस्परिक प्रशंसा की
चर्चा की पात्र भी न बनी
प्रकाशकों ने लगभग हिकारत के भाव से
कविता और कवित्व दोनों को
खारिज़ किया
किसी विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में
शायद ही वह कभी शामिल हो
बावजूद इन सबके
मै आज भी कविता लिखता हूँ
और तब तक लिखता रहूँगा
जब तक खुद को टटोलने की
हिम्मत मुझमें शेष है
मेरे हिसाब से कविता लिखी नही जाती
बल्कि कविता खुद फूटकर निकल पड़ती है
मन के ग्लेशियर से
उसे कोई कविता माने या माने
यह उसकी समझ का मामला है
लेकिन
मेरे जैसे बहुत से अ-कवियों के लिए
कविता खुद से बात करने का तरीका भर है।
© डॉ. अजीत
1 comment:
बहुत सही :)
अब बात करना वो भी खुद से कोई कैसे छोड़े इस में भी परेशानी हो जाती है लोगों को ।
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