Friday, May 9, 2014

बात

मुझे खेद है इस बात का
कि मै उम्मीदों की आकस्मिक मौत
स्थगित नही कर पाया
मुझे पीड़ा है इस बात की
कि मेरे स्वप्न बेहद मामूली थे
मुझे टीस है तुम्हें न समझा पाने की
मै आहत हूँ
तुम्हारे न बदलने से
मुझे आश्चर्य है
मित्रों के व्यवहार पर
मुझे दुःख है
खुद की असफल चालाकी का
इन तमाम प्रपंचो के बावजूद
बस एक बात पर मै खुश हूँ
कि तुम खुश हो मेरे बिना
और मै भी सुख दुःख परे
सिद्धो का चिमटा बजा रहा हूँ
कविता की शक्ल मे।


© डॉ. अजीत

3 comments:

सुशील कुमार जोशी said...

बहुत खूब !

Shekhar Suman said...

आपकी इस पोस्ट को आज के ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है...
आज का बुलेटिन, महंगी होती शादियाँ, कच्चे होते रिश्ते

Amrita Tanmay said...

बहुत बढ़िया..