एक
तकसीम ख्याल
दो रूह
एक जिस्म
ढेरों शिकवे
अधूरे सपनें
कच्ची ख्वाहिशें
उलझे सवाल
और एक मुकम्मल ताल्लुक
को किस्तों में
तुम्हे लौटा रहा हूँ
उदासी की शक्ल में
ये जो मेरी बातों में
सिलवटें है
दरअसल
वो मेरे वजूद का
कतरा कतरा
बिखरा हुआ अक्स है
जिसकी तुरपाई
में तुम्हारी बिनाई कमजोर
हो गई है
और अंगुली जख्मी
जिन जख्मों की दर्द
दवा न बन सके
जिन गमों को मुहब्बत
महफूज़ न रख सके
ऐसी बेवा मुहब्बत को
हिज्र के हवाले कर
अपने रास्ते अख्तियार करने का
हक आज तुम्हे देता हूँ
किस हक से
यह तुम्हें तय करना है
हो सके तो जल्दी करना
क्योंकि
ये तुम्हें भी पता है
मुझे मुकरने की आदत है।
© डॉ. अजीत
तकसीम ख्याल
दो रूह
एक जिस्म
ढेरों शिकवे
अधूरे सपनें
कच्ची ख्वाहिशें
उलझे सवाल
और एक मुकम्मल ताल्लुक
को किस्तों में
तुम्हे लौटा रहा हूँ
उदासी की शक्ल में
ये जो मेरी बातों में
सिलवटें है
दरअसल
वो मेरे वजूद का
कतरा कतरा
बिखरा हुआ अक्स है
जिसकी तुरपाई
में तुम्हारी बिनाई कमजोर
हो गई है
और अंगुली जख्मी
जिन जख्मों की दर्द
दवा न बन सके
जिन गमों को मुहब्बत
महफूज़ न रख सके
ऐसी बेवा मुहब्बत को
हिज्र के हवाले कर
अपने रास्ते अख्तियार करने का
हक आज तुम्हे देता हूँ
किस हक से
यह तुम्हें तय करना है
हो सके तो जल्दी करना
क्योंकि
ये तुम्हें भी पता है
मुझे मुकरने की आदत है।
© डॉ. अजीत
1 comment:
आदत बदल दो :)
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