Monday, October 6, 2014

जरिया

सुनो !
तुम्हारी आँखों में जो यें
मायूसी के रतजगे है
इन्होने तुम्हारी खूबसूरती में
इजाफ़ा ही किया है
तुम्हारी मुस्कान में अब फैलाव भले ही कम हो
मगर गजब की गहराई दिखती है
जिसे किनारे खड़ा देखते हुए
हर बार उतरने का होता है मन
तुम्हारे मन की सिलवटों को नापतें हुए
अब हांफना नही पड़ता
तुम्हारी उलझी पलकों की ओट में
देखता हूँ रोजमर्रा का छद्म युद्ध
तुम्हारे लबों की खुश्की
खुरदरी नही छोटी छोटी शिकायतों के
रेगिस्तान है
जिसे एक फूंक से उड़ा सकती हो तुम
मुद्दत से आंसूओं से चेहरा
धोती रही हो तभी तो कहता हूँ
तुम्हारा ये नूर
बेशकीमती है
तुम्हारी कीमत तुम्हें छोड़ सबको पता है
तुम्हारी बेफिक्री की एक वजह यह भी है
तुम हमारी फ़िक्र में शामिल हो
जब भी हंसती हो
हवाओं में घुल जाते है नए राग
कुछ पुरानी खुशबू
अभी एक लड़खडाता हुआ झोंका इधर आया
और मिल गई तुम्हारी खबर
तुम्हारी खबर के लिए तुमसे मिलना या
बात करना जरूरी नही
बस निकलना पड़ता है घर की चारदीवारी से
तकना पड़ता है आसमान
चाँद सूरज हवा तारे नदी झरनें
और कुछ रास्ते
तुम्हारे सच्चे खबरी है
इन दिनों बस यही जरिया है
तुमसे गूफ़्तगू करने का
तुम्हारा हालचाल जानने का
यकीनन।
© डॉ.अजीत

1 comment:

सुशील कुमार जोशी said...

क्या बात है बहुत खूब !