Tuesday, February 17, 2015

लाचारी

सात लाचारियां...
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गरीब आदमी
बनाते है सरकार
अमीर बनाते है
प्रधानमन्त्री।
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वो बो देता है
भूख
और उगाता है अन्न
मरता है जिल्लत से
नही मांगता मगर
राहत पैकेज
वो किसान है
सफल उद्यमी नही।
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डर जाता है
एक नोटिस से
जोड़ता है साहब के आगे हाथ
नही सीख पाया
व्यवस्था में
सेंधमारी
चोरी को समझता है पाप
देश का राजस्व
उसी के सहारे है।
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देश का प्रधानमंत्री
एक चायवाला है
एक प्रदेश का मुख्यमन्त्री
पूर्व ईमानदार अफसर
अफसर साहित्यकार उद्यमी पूर्व नौकरशाह
कहीं कहीं राज्यपाल भी है
सबका हिस्सा तय है
व्यवस्था में
मजदूर ढोता है बोझ
किसान ढोता है कर्जा
दोनों हाशिए पर है
मेरा देश कृषि प्रधान है
इस पर ग्लानि है मुझे।
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सुना है अब
खेती बाड़ी की आमदनी पर
लगेगा टैक्स
कुछ नौकरीपेशा कुछ उद्यमी लोगों को
इस बात पर था सख़्त ऐतराज़ कि
वो टैक्स भरें
और किसान मुक्त रहे
अब किसानों को भरना होगा
आईटीआर
गाँव में लगेंगे पेन कार्ड बनाने के शिविर
देश का विकास
अब किसानों की जेब से होगा
जिन्हें सिस्टम कुतर रहा है रोज़।
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किसान का बेटा बनता है
डॉक्टर
इंजीनियर
अफसर
टीचर
नही बनना चाहता
किसान
वजह इक्कीस वीं सदी के
विकास मॉडल में तलाशिए
पूछिए नियति नियंताओं से
मुझसे क्या पूछते हो
मैं तो खुद बन गया हूँ
एक छद्म कवि।
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देशभक्ति अनिवार्य थी
शिक्षा स्वास्थ्य परिवहन
और सामाजिक न्याय
बुनियादी जरूरतें थी
जब भी इन पर खड़ा करता सवाल
जवाब देने की बजाय
वो मुझे घोषित कर देते
राष्ट्रविरोधी
अपने ही देश में
राष्ट्रभक्ति और निष्ठा का एक ही प्रमाण था
चुप रहना।
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© डॉ. अजीत

2 comments:

डॉ. दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 19-02-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1894 पर दिया जाएगा
धन्यवाद

Pratibha Verma said...

कटु सत्य ...