Tuesday, April 12, 2016

कमतर

बेहतरी के चुनाव में
तुम्हारा असमंजस समझा जा सकता है

एक साथ दो लोग बेहतर हो सकते है
मगर हम मान पाते है एक ही को बेहतर

यह एक मानवीय सीमा है

बेहतरी में कोई संघर्ष नही होता
इस बात में आधा गल्प आधा सच है
कल्पना सदा ही रही है बेहतरी की दास

अब सवाल ये बड़ा है

जो बेहतर नही है मगर कमतर भी नही है
उनका मूल्यांकन कौन करेगा
जिन्हें मान लिया गया है प्रतिस्पर्धाशून्य
उनके एकांत पर कौन लिखेगा समीक्षा
कौन बताएगा उन्हें कि उनके कॉलर मुड़े हुए है

जब सारी दुनिया बेहतरी की तलाश में गुम है
दौड़ रही है रात दिन बिना किसी दिशाबोध के

ये जिम्मेदारी मैं लेता हूँ
बेहतर से कमतर लोग मेरी निग़ाह में है
इस बिनाह पर वो
मुस्कुरा सकतें है
गा सकतें है
जी सकते है औसत से नीचे की उपलब्धि का जीवन
उतने ही जोश के साथ

तुम बेहतर लोगो का समूह बनाओं
मैं कमतर लोगो को फैला रहा हूँ
दुनिया भर में
ताकि बना रहे संतुलन
और बचा रहें जीवन
जीवन की शक्ल में।

©डॉ.अजित 

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