ऊबकर एकदिन
हटा दिया मैंने चश्मा
आँखें बहुत दिन से कर रही थी
शिकायत
वो देखना चाहती थी बिना किसी मदद के
मदद की निर्भरता कमजोर करती है इंसान को
ये बात मुझे कान ने तब बताई
जब सो रहा था मैं
जागते ही आँख मलकर मैंने देखा दर्पण
आँखों का नम्र निवेदन झलक रहा था
चश्मा एक असुविधा था
जिसे नाक पर चढ़ा रखा था बेवजह
बिना आँख की इच्छा जानें
कान भी बोझ के सताए हुए थे
उन्होंने कहा धन्यवाद
और आश्वस्त किया मुझे
कुछ दिन अफवाह न सुनने के लिए
कान की इस सदाशयता के लिए
मैंने कृतज्ञता ज्ञापित की
अपनें ही कानों को ठीक वैसे छूकर
जैसे उस्ताद का जिक्र करते हुए छूता है
कोई फनकार
चश्मा उतारने के बाद
भले ही अब कम दिखे मुझे
मगर दिखेगा उतना ही
जितना जरूरी है मेरे लिए
अपनी मात्रा और दूरी की पूर्णता के साथ।
©डॉ. अजित
हटा दिया मैंने चश्मा
आँखें बहुत दिन से कर रही थी
शिकायत
वो देखना चाहती थी बिना किसी मदद के
मदद की निर्भरता कमजोर करती है इंसान को
ये बात मुझे कान ने तब बताई
जब सो रहा था मैं
जागते ही आँख मलकर मैंने देखा दर्पण
आँखों का नम्र निवेदन झलक रहा था
चश्मा एक असुविधा था
जिसे नाक पर चढ़ा रखा था बेवजह
बिना आँख की इच्छा जानें
कान भी बोझ के सताए हुए थे
उन्होंने कहा धन्यवाद
और आश्वस्त किया मुझे
कुछ दिन अफवाह न सुनने के लिए
कान की इस सदाशयता के लिए
मैंने कृतज्ञता ज्ञापित की
अपनें ही कानों को ठीक वैसे छूकर
जैसे उस्ताद का जिक्र करते हुए छूता है
कोई फनकार
चश्मा उतारने के बाद
भले ही अब कम दिखे मुझे
मगर दिखेगा उतना ही
जितना जरूरी है मेरे लिए
अपनी मात्रा और दूरी की पूर्णता के साथ।
©डॉ. अजित
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