Wednesday, April 13, 2016

वो दोनों

फेसबुक पर वो दोनों
कयासों और अफवाहों के शहर में रहतें थे
सबके पास था उनके बारें में
गल्प का अपना एक वैयक्तिक संस्करण
कुछ लोगो का मानना था वो दोस्त से बढ़कर कुछ थे
कुछ ने उनको मान लिया था प्रेमी-प्रेमिका
इनबॉक्स से लेकर व्हाट्स एप्प तक
उनके स्टेट्स की चर्चा होती थी
उनमें से कोई एक जब डिएक्टिवेट कर देता प्रोफाइल
दूसरे के स्टेट्स से लोग वजह का लगाते थे अंदाज़ा
उन दोनों के कमेंट लाइक पर
पढ़े जाते थे निंदा की गोष्ठियों में शोध पत्र
रसज्ञ खोजते थे नए रस
भाषा विज्ञानी हतप्रभ थे
उनकी भाषा के अति साधारण होने पर
कुछ उन्हें देख याद करते थे अपना अतीत
कुछ उन्हें देख करते थे भविष्य की यात्रा
शायद ही कोई जानता था
यह बात कि
उनके मिलने या बिछड़ने की वजह
फेसबुक नही दैवीय थी
उन्होंने तय की अपने अपने हिस्से की यात्रा
और मुस्कुराते हुए कहा अलविदा
उनको भूलना आसान नही था
मगर फिर भी एक दिन भूल गए लोग
ये देखकर
अक्सर याद आती रही उनकी बातें
जो महज बातें नही थी
बल्कि जीवंत दस्तावेज़ थी
जिनके सहारे अँधेरे में भी
बिना कहीं टकराए
क्षुब्ध लोग अपने बिस्तर तक पहूंच सकते थे।

© डॉ.अजित

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