Sunday, May 4, 2014

खत

बुरी मानने वाली हर बात पर
वो तेरा स्माईली चस्पा करना
तुम्हारी फिक्रों की जमानत थी
सच कहने की हिम्मत
झूठ बोलने से एक कदम छोटी थी
एक जज्बाती बातचीत में
तुम्हारी जम्हाई आने पर
पहली बार तुम्हारी अवचेतन की
उदासी का खत मिला
उस पर अधूरा पता था
उसकी लिखावट साफ़ थी
मगर
रसीदी टिकट लगाने की वजह से
वो खत बैरंग मुझ तक पहूंचा
डाकिए के अहसान के साथ
मेरे खत
तुम्हे इस जन्म में नही मिलेंगे
क्योंकि मेरा डाकिया
बेरहम वक्त है
हो सके तो तब तक
इन्तजार करना मेरा।

© डॉ. अजीत