Friday, September 12, 2014

गजल

खुद को यूं भी आजमाना चाहिए
बेवजह भी जीना आना चाहिए

दुश्मनों का जिक्र नही करता अब
दोस्तों को भी  भूल जाना चाहिए

कातिल मेरे ने जुल्म क़ुबूल किया
गवाह को अब मुकर जाना चाहिए

नाराजगी में भी दुआ भेज दी उसने
मर्ज़ तुम्हारा  ठीक हो जाना चाहिए

मयकदे में सहारा देने लगे है लोग
महफिल से अब  उठ जाना चाहिए

© अजीत

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