गलतियाँ करके अक्सर भूला देता हूँ
थोडा सच ज्यादा झूठ मिला देता हूँ
गुनाह का बोझ ताउम्र उठाना है पड़ता
वफा के नाम पर आँख झुका देता हूँ
तुम्हारी समझदारी कब मेरे काम आई
अपनी नादानी से ही काम चला लेता हूँ
उसकी चालाकियां मुहब्बतों का है सबब
गुस्ताखियों पर मै अक्सर मुस्कुरा देता हूँ
ऐब तमाशा बनें जब से महफिल में
हुनर अपने सब के सब छिपा लेता हूँ
© डॉ. अजीत
थोडा सच ज्यादा झूठ मिला देता हूँ
गुनाह का बोझ ताउम्र उठाना है पड़ता
वफा के नाम पर आँख झुका देता हूँ
तुम्हारी समझदारी कब मेरे काम आई
अपनी नादानी से ही काम चला लेता हूँ
उसकी चालाकियां मुहब्बतों का है सबब
गुस्ताखियों पर मै अक्सर मुस्कुरा देता हूँ
ऐब तमाशा बनें जब से महफिल में
हुनर अपने सब के सब छिपा लेता हूँ
© डॉ. अजीत
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