Tuesday, March 15, 2016

हत्या

जब तुम्हारा साथ नही होता
दिल जबरदस्ती बहाने तलाश लेता है
दुखी होने के
मानों मेरे और दुःखो में बीच में तुम खड़ी हुई हो
जैसे ही तुम चित्र से हटती हो
कुछ ऐसे दुःख टूट पड़ते है मुझपर
जिनका मैंने कभी कुछ नही बिगाड़ा
कल की ही बात है
जब तुमनें संकेतों के जरिए बताया कि
अब मैं तुम्हारे आसपास नही हूँ
ठीक उसी वक्त मेरी स्लीपर टूट गई
मैं आधे रास्ते से लंगड़ाते हुए लौटा घर
जब तुम्हें कहा मेरे बिना जीना आ गया तुम्हें
ठीक उसी वक्त मेरी पलक मुड़ गई
झूठ नही कहूँगा बड़े जोर से रोना आया
मगर पलक सीधा करनें के चक्कर में भूल गया रोना
बाद में हंसता रहा पागलों की तरह
तुम्हारी ध्वनियों से एक चित्र बनाता हूँ
जो बह जाता है समय के साथ
बेवक्त पर आए दुखों से चाय पूछता हूँ
वो मांगते है शराब
मैं उन्हें पानी पिलाकर करता हूँ विदा
क्योंकि उनके तरीके से तुम्हें भूला नही जा सकता
सुखों के कुछ खोटे सिक्के
यादों की गुल्लक से निकालता हूँ
किसी नाराज़ बच्चें की तरह
और खरीद लेता हूँ एकांत का अँधेरा
मुझे डर है तुम्हारे जाने की खबर से
दुःख वहां भी मुझे ढूंढ ही लेंगे एकदिन
और कायदे ढूंढ भी लेना चाहिए
और कर देनी चाहिए मेरी हत्या इरादतन।

©डॉ.अजित

2 comments:

विरम सिंह said...

आपकी लिखी रचना " पांच लिंकों का आनन्द " पर कल बुधवार 16 मार्च 2016 को लिंक की जाएगी . http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा .

Neeraj Kumar said...
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