Saturday, September 6, 2014

मिलाप

उन लोगो के फोन नम्बर नही है पास
जिनसे तलब की हद तक
बात करने की इच्छा होती है
उन लोगो के पते नही है पास
जिन्हें चिट्ठी लिखने का होता है
लगभग रोज मन
उन लोगो से मिलने की नही है कोई आस
जिनसे मिलना
सांसो जितना जरूरी लगता है
ऐसे लोगो की एक छोटी सी
फेहरिस्त है अपने पास
जिसमें कच्ची पेंसिल से
नाम लिखता-मिटाता रहता हूँ
जो प्राप्य नही है
उसकी आस एक झूठा
छल है खुद से
अपमान है उन लोगो का
जिनसे रोज होती है बात
जिन्हें लिखता रहा हूँ खत
जिनसे होती रही है मुलाक़ात
मगर फिर भी
इस छल और अपमान के बीच
बुनता रहा हूँ
कुछ वाहियात कल्पनाएँ
बांटता रहा हूँ आश्वस्ति के कोरे झूठ
और अधूरे निमन्त्रण पत्र
जीता रहा हूँ खुद के अंदर
दस-बीस आदमी
दरअसल बात यह है
हर अजनबी से मुलाक़ात के बाद
रूचि के केंद्र बदल जाते है
इसलिए मेल मिलाप से बचता हुआ
यूं ही लोगो की जोड़-तोड़ गुणा-भाग में
रिश्तें को जीने की आदत सी हो गई है
किसी से भी मिलना
सबसे पहले
उसे खो देने का उपक्रम लगता है
इसलिए जिनसे मिलता हूँ
उनसे मिलना नही चाहता
जिनसे मिलना चाहता हूँ
उनसे खुद नही मिलता
समय और परिस्थिति दो बढ़िया बहाने है
जिनके सहारे जीवन को
छद्म अभिमान के साथ काटा जा सकता है
किसी से मिलने और न मिलने की वजह
लगभग समान होती है
यकीनन।

© अजीत


2 comments:

सुशील कुमार जोशी said...

अच्छा करते हो :)
मेरे पास तो मोबाईल ही नहीं है ।

सुशील कुमार जोशी said...

अच्छा करते हो :)
मेरे पास तो मोबाईल ही नहीं है ।