Monday, September 8, 2014

गुफा

तुम्हारे एकाधिकार
के आयत में
एक भी समकोण
मेरा नही है
तुम्हारे वृत्त की त्रिज्या
मेरे व्यास से बड़ी है
हमारे सम्बन्धों का वर्गमूल
सदा विषम ही आता है
तुम्हारे समानांतर रेखा खीचने के बाद भी
तुम छोटी नही पड़ती
मन की ज्यामिति
इतने अक्षांशों में बटी है कि
तुम्हारी समीकरण सुलझाते समय
हर बार बीजगणित सा सपाट होना पड़ता है
नही चाहा था कभी तुम्हें
गणित के उप विषयों सा पढ़ना
देखा था हमेशा
तुम्हारी आँखों में सवेरा
मुस्कान में रोशनी
हंसी में नदी
उदासी में पहाड़
सवालों में झरनें
इस जंगल को गणित में तब्दील होते देखना
सदी का सबसे बड़ा सदमा है
गणित और जंगल साथ नही चल सकते
एक निश्चित है
दूसरा परिवर्तनशील
इसलिए लौट रहा हूँ
उस गुफा में
जहाँ न विज्ञान जाता है
न आध्यात्म
और न तुम्हारे कोरे अनुमान
चढ़ रहा हूँ उलटे कदमों से
तुम्हें देखते हुए
यह दिशा अनुमान की
कोई गणितीय कमजोरी नही है
बल्कि यह तुम्हें देखते हुए
भूलने का एक सिद्ध प्रयास है।

© अजीत