मत समझिए आसमान पर हूँ
दोस्तों इन दिनों ढलान पर हूँ
ना जाने किस की जान लूँगा
फिर से वक्त की कमान पर हूँ
तुम क्या परख सकोगे मुझे
जन्म से ही इम्तिहान पर हूँ
शोहरतें न रास आई फकीर को
जिन्दा मुफलिसी के गुमान पर हूँ
सफर में मुलाक़ात की उम्मीद नही
मंजिल की आख़िरी थकान पर हूँ
© अजीत
दोस्तों इन दिनों ढलान पर हूँ
ना जाने किस की जान लूँगा
फिर से वक्त की कमान पर हूँ
तुम क्या परख सकोगे मुझे
जन्म से ही इम्तिहान पर हूँ
शोहरतें न रास आई फकीर को
जिन्दा मुफलिसी के गुमान पर हूँ
सफर में मुलाक़ात की उम्मीद नही
मंजिल की आख़िरी थकान पर हूँ
© अजीत
2 comments:
http://bulletinofblog.blogspot.in/2014/09/blog-post_16.html
बहुत सुंदर ।
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