Sunday, December 13, 2015

नोक झोंक

चंद नोक-झोंक
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मैंने कहा
साफ साफ कहा करो
क्या बात बुरी लगी है
दर्शन की भाषा मत बोला करो
साफ़ बोलने से मसले जल्दी हल होते है
उलझतें नही है
जवाब में भी एक शब्द नही बोली वो
मैंने कहा अब क्या हुआ
दर्शन की भाषा समझतें नही हो
मौन का अनुवाद भी भूल गए हो
तुम तो ऐसे न थे, अब क्या फायदा
अब मैं चुप था।
***
कुछ दिन बातचीत बंद के बाद
अचानक मैंने फोन किया
तुमनें रिसीव भी किया
मगर हमारी कोई बात नही हुई
हम दोनों बोलते जरूर रहे
अपने अपने फोन से
हमारी आवाजें रास्ता भटक कर
लौट आई हम तक
रिश्तों यह 'ईको'
जानलेवा था बेहद।
***
बाल ज्यादा छोटे क्यों करा लिए
वो वाली शर्ट क्यों नही पहनी
इतने चुप क्यों रहते हो
पेंट की जेब में हाथ डालकर मर चला करो
तुम्हारी ये कुछ छोटी छोटी शिकायतें थी
जिन्हें दूर न करने का खेद रहा है मुझे
मगर कहा कभी नही
अगर कभी कह देता तो
तुम छोड़ देती टोकना
जो कभी नही चाहता था मैं।
***
आख़िरी बार तुम इस बात पर
नाराज़ थी मुझसे
बेहद लापरवाह हूँ मैं
जीता हूँ केवल खुद के लिए
हो जाता हूँ कई बार बेहद कड़वा
मैंने तुम्हें मना नही पाया बावजूद इसके
लापरवाह नही असावधान था मैं
खुद के लिए नही तुम्हारे लिए जीता था मैं
कड़वा मेरा लहज़ा था दिल नही।

© डॉ. अजित 

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