लम्बे अरसे से
समन्वय और समझौते की धूरी पर
टँगा हुआ एक वृत्त था वो
जिसकी गति और नियति तय थी
उसकी चाल का आघूर्ण अज्ञात था
वो शापित था
अन्यथा लिए जाने के लिए
वो रोज़ चलता था
मगर पहूंचता कहीं नही था
उसके व्यास में एक लोच थी
इसलिए उसका ठीक ठीक मापन सम्भव नही था
उसके आंतरिक वलयों का एकांत
अप्रकाशित था
वो घूम रहा था
अपनी तयशुदा मौत के इंतजार में
उसका इंतज़ार अंतहीन था
उपेक्षा की हद तक वो खारिज़ था
वो यारों का यार था
हमेशा माफी मांगने को तत्पर
उसे यकीं नही था
खुद के सच होने का
वो झूठ था
सफेद झूठ
कुछ दाल में काला
या फिर आटे में नमक
यह तय करना मुश्किल था
उसके लिए
सबके लिए।
© डॉ. अजित
समन्वय और समझौते की धूरी पर
टँगा हुआ एक वृत्त था वो
जिसकी गति और नियति तय थी
उसकी चाल का आघूर्ण अज्ञात था
वो शापित था
अन्यथा लिए जाने के लिए
वो रोज़ चलता था
मगर पहूंचता कहीं नही था
उसके व्यास में एक लोच थी
इसलिए उसका ठीक ठीक मापन सम्भव नही था
उसके आंतरिक वलयों का एकांत
अप्रकाशित था
वो घूम रहा था
अपनी तयशुदा मौत के इंतजार में
उसका इंतज़ार अंतहीन था
उपेक्षा की हद तक वो खारिज़ था
वो यारों का यार था
हमेशा माफी मांगने को तत्पर
उसे यकीं नही था
खुद के सच होने का
वो झूठ था
सफेद झूठ
कुछ दाल में काला
या फिर आटे में नमक
यह तय करना मुश्किल था
उसके लिए
सबके लिए।
© डॉ. अजित
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