यदि वक्त रहते
मांग ली जाती कुछ माफियां
तो थोड़ी बेहतर हो सकती थी
ये दुनिया
यदि वक्त रहते
कर दिया जाता इजहार तो
अपनेपन के वृत्त का होता एक सीमित विस्तार
यदि वक्त रहते
बता दी जाती अपनी सीमाएँ
तो इतनी नही होती शिकायतें
वक्त रहते बहुत कुछ
किया जा सकता था
जो नही किया गया
इसलिए अफ़सोस की बही पीठ पर लादें
घूम रहें है हम
दर ब दर।
© डॉ.अजित
मांग ली जाती कुछ माफियां
तो थोड़ी बेहतर हो सकती थी
ये दुनिया
यदि वक्त रहते
कर दिया जाता इजहार तो
अपनेपन के वृत्त का होता एक सीमित विस्तार
यदि वक्त रहते
बता दी जाती अपनी सीमाएँ
तो इतनी नही होती शिकायतें
वक्त रहते बहुत कुछ
किया जा सकता था
जो नही किया गया
इसलिए अफ़सोस की बही पीठ पर लादें
घूम रहें है हम
दर ब दर।
© डॉ.अजित
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