Sunday, July 13, 2014

रिश्तें

रिश्तें उत्पाद नही होते कि
उनके विपणन की कार्ययोजना बनें
रिश्तें बुनियाद भी नही होते
जिन पर अपेक्षाओं की इमारत खड़ी की जाए
रिश्तें पानी की तरह तरल होते है
उनकी गति ही उनकी लय और ऊर्जा होती है
रिश्तों को बांधना
सम्बोधन, प्रकृति या समय में
मूर्खता है
एक ऐसी मूर्खता जिसका पता
रिश्तें भस्म होने पर चलता है
चाहते हो किसी से जुड़ना
चाहते तो कोई आत्मीय सम्बोधन
तो हमेशा खुले रखना रिश्तों के बंधन
तभी नेह पनपेगा
अपनेपन की खाद के साथ
अन्यथा  रोज कहीं न कहीं
एक पौधा सूख जाता है
बेहद देखभाल के बाद भी।
© अजीत