Tuesday, July 29, 2014

दरख्वास्त

जो हो इजाजत
सवाल पूंछू कुछ अनकहे
हिसाब लूं करवटों का
जवाब दूं तुम्हारे वहम का
ख्याल तकसीम करूं
रूह को रिहा करूं जमानत पर
जिस्म को गल जाने दूं
जो हो इजाजत
सजदे में तुझे शामिल करूं
चाँद को लिफाफे में बंद करूं
सूरज को समन्दर में डूबो दूं
दरख्तों से किस्से कहूँ
हवाओं के संग बहता चलूँ
तेरी इजाजत इसलिए जरूरी है
धरती आसमान चाँद सूरज हवा
सब तेरे अपने अलग है
एक तेरी इजाजत से
उन्हें शामिल कर सकता हूँ
अपनी कायनात में
और तुझे महसूस कर सकता हूँ
दिल के सूफी जज्बात में
बस एक तेरी इजाजत की दरकार है
तुम अगर इजाजत दो तो
हासिल और तमन्ना का फर्क मिट सकता है
नया वरक खुल सकता है
जिसके हाशिए पर सिर्फ तुम्हारा नाम लिखा है
इजाजत की इजाजत पर एक बार
गौर करना
ये दरख्वास्त है मेरी।
© अजीत

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