जीना अब हुनर लगता है
मुस्कुराने में डर लगता है
रूह की बातें थी बेकार
जिस्मों का सफर लगता है
नजदीकियों का वहम था
दोस्त अब सिफर लगता है
शिफा नही होनी अब
दवा भी जहर लगता है
मेरी-तेरी लाख तल्खियाँ सही
तेरे होने से मकां घर लगता है
© डॉ. अजीत
मुस्कुराने में डर लगता है
रूह की बातें थी बेकार
जिस्मों का सफर लगता है
नजदीकियों का वहम था
दोस्त अब सिफर लगता है
शिफा नही होनी अब
दवा भी जहर लगता है
मेरी-तेरी लाख तल्खियाँ सही
तेरे होने से मकां घर लगता है
© डॉ. अजीत
1 comment:
बहुर खूब .. लाजवाब श्वर ...
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