कुछ लोग मुझसे डरे हुए थे
उन्हें डर था
मै उनका शोषण कर सकता था
यह शोषण मनोवैज्ञानिक होता हुआ भी
दैहिक जैसा हो सकता था
या फिर शायद आर्थिक
कुछ लोग मुझे प्रेम कर रहे थे
उनका प्रेम
लौकिक अलौकिक त्रिलौकिक जैसा था
उसमे एकाधिकार और प्रतिकार की जुगलबन्दी थी
मेरी इच्छा जाने बगैर
मुझे पाने की जिद उसमे शामिल थी
कुछ लोग मुझसे नफरत कर रहे थे
उनकी नफरत में
अपेक्षाओं के टूट जाने की वाजिब वजह
शामिल थी
उनके लिए मै एक बुद्धिमान
षड्यंत्रकारी था
कुछ लोग केवल साक्षी, दृष्टा और तटस्थ थे
वो दिन ब दिन बदलते रिश्तों की लोच देख
कौतुहल से भरे थे
कुछ लोग विश्लेषण में लिप्त थे
वो बुद्धि के बीजगणित और
मानवीय सम्बन्धों की ज्यामिति से
मेरे मन का नक्शा बना रहे थे
इन सब के बीच
मै शोध विषय सा टंगा था
मेरा मूल्यांकन इतने किस्म किस्म के लोगो से
भिन्न भिन्न तरीके से हुआ
सबके निष्कर्ष में सार्थकता के स्तर का
विरोधाभास था
शायद यही वजह थी कि
जब भी दो लोग मेरे बारें में बात करते तो
वो उलझी हुई बहस में तब्दील हो जाती
किस्तों और हिस्सों में
जिन्दगी जीता हुआ मै
केवल मुस्कुरा सकता था
अपने आस पास के लोगो
को प्रासंगिक बनाए रखने के लिए यह
साँसों जितना जरूरी था
क्योंकि
जिस दिन मै टूटना शुरू होता
उस दिन एक भीड़
हंसती- रोती हुई पागल हो सकती थी
और वो दोस्त हो या दुश्मन
कोई भी अपने चाहने वालों
यह हश्र कभी नही चाहता
मै तो फिर भी मै था।
© अजीत
उन्हें डर था
मै उनका शोषण कर सकता था
यह शोषण मनोवैज्ञानिक होता हुआ भी
दैहिक जैसा हो सकता था
या फिर शायद आर्थिक
कुछ लोग मुझे प्रेम कर रहे थे
उनका प्रेम
लौकिक अलौकिक त्रिलौकिक जैसा था
उसमे एकाधिकार और प्रतिकार की जुगलबन्दी थी
मेरी इच्छा जाने बगैर
मुझे पाने की जिद उसमे शामिल थी
कुछ लोग मुझसे नफरत कर रहे थे
उनकी नफरत में
अपेक्षाओं के टूट जाने की वाजिब वजह
शामिल थी
उनके लिए मै एक बुद्धिमान
षड्यंत्रकारी था
कुछ लोग केवल साक्षी, दृष्टा और तटस्थ थे
वो दिन ब दिन बदलते रिश्तों की लोच देख
कौतुहल से भरे थे
कुछ लोग विश्लेषण में लिप्त थे
वो बुद्धि के बीजगणित और
मानवीय सम्बन्धों की ज्यामिति से
मेरे मन का नक्शा बना रहे थे
इन सब के बीच
मै शोध विषय सा टंगा था
मेरा मूल्यांकन इतने किस्म किस्म के लोगो से
भिन्न भिन्न तरीके से हुआ
सबके निष्कर्ष में सार्थकता के स्तर का
विरोधाभास था
शायद यही वजह थी कि
जब भी दो लोग मेरे बारें में बात करते तो
वो उलझी हुई बहस में तब्दील हो जाती
किस्तों और हिस्सों में
जिन्दगी जीता हुआ मै
केवल मुस्कुरा सकता था
अपने आस पास के लोगो
को प्रासंगिक बनाए रखने के लिए यह
साँसों जितना जरूरी था
क्योंकि
जिस दिन मै टूटना शुरू होता
उस दिन एक भीड़
हंसती- रोती हुई पागल हो सकती थी
और वो दोस्त हो या दुश्मन
कोई भी अपने चाहने वालों
यह हश्र कभी नही चाहता
मै तो फिर भी मै था।
© अजीत
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