अल्फाज़ धूल से बिखरे हुए थे
जब तुमने मुहब्बत में तंज किया
और रंज करते हुए कहा
मुझे तुम्हारी फ़िक्र नही
फ़िक्र दरअसल अंग्रेजी चश्मा है
विलायत जैसा झूठा
इसके बाहर एक सख्त दुनिया है हकीकत की
तुम सहर की अजान की तरह बेपरवाह हो
ये अलग बात है तुम्हारी इबादत
मेरे हिस्से में आयी है
तुम्हारे मलाल को रफू करते करते
मेरी अंगुली जख्मी हो गई है
मेरी आस्तीन पर तुमने जो
भरोसे का बटन लगाया था
वो आधा लटका हुआ है टूटकर
इसी डर से कमीज धोई नही मुद्दत से
मेरी फ़िक्र तुम्हे वक्त के इस स्याह चश्में
में शायद ही दिखाई देगी
खुद की जिन्दगी में हाशिए पर पड़ा
तुम्हे रोज़ जमा-नफ़ी करता हूँ
हासिल सिफर आने पर डरता हूँ
मेरे चेहरें पर ये जो किस्तों में पुती हंसी है
दरअसल ये तुम्हारी हसीन यादों का सूद है
जिसके सहारे मै
तमाशबीनों का मजमा लगाए बैठा हूँ
दुनिया मुझे मदारी समझती है
और तुम मतलबी
रंज ओ' मलाल से गर मिले फुरसत
तो देखना शाम के अँधेरे में
कोई भटका हुआ परिंदा
कोई पुराना खत
शायद मेरा सही पता मिल जाए
इल्म की यह आख़िरी कोशिस
तुम्हें एक बार जरुर करनी चाहिए
यह मशविरा है मेरा
मानों न मानों
तुम्हारी मर्जी।
© अजीत
जब तुमने मुहब्बत में तंज किया
और रंज करते हुए कहा
मुझे तुम्हारी फ़िक्र नही
फ़िक्र दरअसल अंग्रेजी चश्मा है
विलायत जैसा झूठा
इसके बाहर एक सख्त दुनिया है हकीकत की
तुम सहर की अजान की तरह बेपरवाह हो
ये अलग बात है तुम्हारी इबादत
मेरे हिस्से में आयी है
तुम्हारे मलाल को रफू करते करते
मेरी अंगुली जख्मी हो गई है
मेरी आस्तीन पर तुमने जो
भरोसे का बटन लगाया था
वो आधा लटका हुआ है टूटकर
इसी डर से कमीज धोई नही मुद्दत से
मेरी फ़िक्र तुम्हे वक्त के इस स्याह चश्में
में शायद ही दिखाई देगी
खुद की जिन्दगी में हाशिए पर पड़ा
तुम्हे रोज़ जमा-नफ़ी करता हूँ
हासिल सिफर आने पर डरता हूँ
मेरे चेहरें पर ये जो किस्तों में पुती हंसी है
दरअसल ये तुम्हारी हसीन यादों का सूद है
जिसके सहारे मै
तमाशबीनों का मजमा लगाए बैठा हूँ
दुनिया मुझे मदारी समझती है
और तुम मतलबी
रंज ओ' मलाल से गर मिले फुरसत
तो देखना शाम के अँधेरे में
कोई भटका हुआ परिंदा
कोई पुराना खत
शायद मेरा सही पता मिल जाए
इल्म की यह आख़िरी कोशिस
तुम्हें एक बार जरुर करनी चाहिए
यह मशविरा है मेरा
मानों न मानों
तुम्हारी मर्जी।
© अजीत
1 comment:
बहुत सुंदर ।
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